वो माँ होती है
जो लाखों कष्टों को सहती और खुश रहती है सहने को,
जो गीले तल पर खुद सोयी तुझे सूखे पे लिटाया सोने को,
जो केवल तुझसे ही हारी, हरा के सारी दुनिया को,
वो माँ होती है सायक क्यों छोड़ा उसको रोने को,
जब जब तेरी आँखों में आँसू की बूँदें आईं थीं,
ममता के ही सागर में वो बूँदें जाके समाईं थीं,
जब-जब तेरी रूहों में शूलों का साया आया था,
माता के ही कर ने सायक उनको दूर हटाया था,
जिसने अपना रूप बिगाड़ा तेरा रूप संवारने को,
वो माँ होती है सायक क्यों छोड़ा उसको रोने को,
जो गीले तल पर खुद सोयी तुझे सूखे पे लिटाया सोने को,
जो केवल तुझसे ही हारी, हरा के सारी दुनिया को,
वो माँ होती है सायक क्यों छोड़ा उसको रोने को,
जब जब तेरी आँखों में आँसू की बूँदें आईं थीं,
ममता के ही सागर में वो बूँदें जाके समाईं थीं,
जब-जब तेरी रूहों में शूलों का साया आया था,
माता के ही कर ने सायक उनको दूर हटाया था,
जिसने अपना रूप बिगाड़ा तेरा रूप संवारने को,
वो माँ होती है सायक क्यों छोड़ा उसको रोने को,
रचयिता
जय श्री सैनी 'सायक',
प्राथमिक विद्यालय कुकहा रामपुर,
विकास खण्ड-सिंहपुर,
जनपद-अमेठी।
विकास खण्ड-सिंहपुर,
जनपद-अमेठी।
Comments
Post a Comment