धन्य वो लोग हैं
दृष्टिबाधित बच्चों के नाम एक कविता
वो भी क्या लोग हैं जिन्होंने
देखा कभी प्रकाश नहीं,
राह चलते तो हैं पर राहों की कोई पहचान नहीं,
मंजिल की और जब बढ़ते हैं वो जा टकराते हैं और कहीं,
राह बदलते हैं फिर अपनी लेकिन खुद को पाते हैं फिर वहीं,
सेल्फी, फेसबुक, व्हाट्सएप्प फोटोग्राफी का उनके लिए कोई अर्थ नहीं,
पंछी, पौधे, पेड़, पहाड़ का भी कोई दर्श नहीं,
जीवन में खूबसूरती का उन्हें है केवल स्पर्श ज्ञान,
कर न होते यदि उनके अपनी जान से भी होते अंजान,
परवरदिगार की ये क्या लीला अंधकार बस अंधकार,
ये सुन्दर चराचरम भी उनके लिए अंधकार बस अंधकार,
धन्य वो शख्स है जो इन्हें देते सदा सहयोग हैं,
बनके किसी की रोशनी हरते किसी का रोग हैं,
धन्य वो लोग हैं जो इन्हें देते सदा सहयोग हैं,
वो भी क्या लोग हैं जिन्होंने
देखा कभी प्रकाश नहीं,
राह चलते तो हैं पर राहों की कोई पहचान नहीं,
मंजिल की और जब बढ़ते हैं वो जा टकराते हैं और कहीं,
राह बदलते हैं फिर अपनी लेकिन खुद को पाते हैं फिर वहीं,
सेल्फी, फेसबुक, व्हाट्सएप्प फोटोग्राफी का उनके लिए कोई अर्थ नहीं,
पंछी, पौधे, पेड़, पहाड़ का भी कोई दर्श नहीं,
जीवन में खूबसूरती का उन्हें है केवल स्पर्श ज्ञान,
कर न होते यदि उनके अपनी जान से भी होते अंजान,
परवरदिगार की ये क्या लीला अंधकार बस अंधकार,
ये सुन्दर चराचरम भी उनके लिए अंधकार बस अंधकार,
धन्य वो शख्स है जो इन्हें देते सदा सहयोग हैं,
बनके किसी की रोशनी हरते किसी का रोग हैं,
धन्य वो लोग हैं जो इन्हें देते सदा सहयोग हैं,
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