माँ
ढेर सारा दुःख पीड़ा सहकर हमें
दुनिया में लाती है माँ।
धूल मिट्टी कंकड़ से हमको बचाकर।
अपनी गोदी में सुलाती है माँ।।
हम बेफिक्र सोएँ इसलिए रात भर जग के।
पीठ हमारी सहलाती है माँ।।
हमारा पहला शब्द माँ ही था।
जब हम कुछ ना जानते,
अंधेरे जीवन में ज्ञान की रोशनी भर देती है माँ।।
हमारा पहली गुरु आप ही हो।
जब हम निराश होते
जीवन जीने की कला सिखाती हैं माँ।।
जब भी हम दुःखी होते
अपनी मुस्कराहट से हमारी सारी चिंताएँ
दूर कर देती है माँ।।
जब भी हम जीवन की झंझावतों से हताश होते।
धीरज रखने को समझाती है माँ।।
अक्सर यह एहसास होता है।
मेरी आँखों में मेरी खुशी और मेरा गम पहचान लेती है माँ।।
तेरा कर्ज कभी चुका न सकते
तेरे लिये सदा ही बच्चे होते।
पालन-पोषण ही नही संस्कार भी भरती है माँ।।
हर हाल में अकेला ना छोड़ना चाहती।
कड़ी धूप हो या जीवन की कड़ी परीक्षा।
अपने स्नेह से सदा छाँव देती है माँ।।
हमारा अस्तित्व तुझसे है। निःस्वार्थ प्रेम से मेरे लिये निर्जल उपवास रखती है।
मेरी जिम्मेदारियों को कभी
बोझ ना समझती है माँ।।
हर रिश्ते में जीती
बहन बेटी पत्नी दादी नानी।
सेवा त्याग समर्पण की प्रतिमूर्ति के साथ-साथ।
धरती पर साक्षात् मन्दिर की मूरत है माँ।।
तेरे रहते कभी यह महसूस ना हुआ।
पर अब तो तेरे बिन अपनी दुनिया
वीरान सी लगती है माँ।।
दुनिया में लाती है माँ।
धूल मिट्टी कंकड़ से हमको बचाकर।
अपनी गोदी में सुलाती है माँ।।
हम बेफिक्र सोएँ इसलिए रात भर जग के।
पीठ हमारी सहलाती है माँ।।
हमारा पहला शब्द माँ ही था।
जब हम कुछ ना जानते,
अंधेरे जीवन में ज्ञान की रोशनी भर देती है माँ।।
हमारा पहली गुरु आप ही हो।
जब हम निराश होते
जीवन जीने की कला सिखाती हैं माँ।।
जब भी हम दुःखी होते
अपनी मुस्कराहट से हमारी सारी चिंताएँ
दूर कर देती है माँ।।
जब भी हम जीवन की झंझावतों से हताश होते।
धीरज रखने को समझाती है माँ।।
अक्सर यह एहसास होता है।
मेरी आँखों में मेरी खुशी और मेरा गम पहचान लेती है माँ।।
तेरा कर्ज कभी चुका न सकते
तेरे लिये सदा ही बच्चे होते।
पालन-पोषण ही नही संस्कार भी भरती है माँ।।
हर हाल में अकेला ना छोड़ना चाहती।
कड़ी धूप हो या जीवन की कड़ी परीक्षा।
अपने स्नेह से सदा छाँव देती है माँ।।
हमारा अस्तित्व तुझसे है। निःस्वार्थ प्रेम से मेरे लिये निर्जल उपवास रखती है।
मेरी जिम्मेदारियों को कभी
बोझ ना समझती है माँ।।
हर रिश्ते में जीती
बहन बेटी पत्नी दादी नानी।
सेवा त्याग समर्पण की प्रतिमूर्ति के साथ-साथ।
धरती पर साक्षात् मन्दिर की मूरत है माँ।।
तेरे रहते कभी यह महसूस ना हुआ।
पर अब तो तेरे बिन अपनी दुनिया
वीरान सी लगती है माँ।।
रचयिता
रवीन्द्र नाथ यादव,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय कोडार उर्फ़ बघोर नवीन,
विकास क्षेत्र-गोला,
विकास क्षेत्र-गोला,
जनपद-गोरखपुर।
Comments
Post a Comment