मैं तेरी अनुकृति हूँ

पूजन है तेरा माँ,
अर्चन है तेरा माँ।

तू मेरी जीवन दात्री,
वन्दन है तेरा माँ।

तूने ही वरदान दिए,
तूने ही तन प्राण दिए।

तू ही तो मेरा मन है,
तूने अरमान दिए हैं।।

तू ही जीवन है माँ,
तू ही तन-मन है।

आशाएँ तूने दी हैं,
भाषाएँ तूने दी हैं।

तन-मन है तेरा माँ,
सब धन है तेरा  माँ।

पूजन है तेरा माँ।
वन्दन है तेरा माँ।

तू मेरी जननी है
मै तुझसे जीवित हू्ँ।

तू गर आनंददित है
मैंं भी आनंदित हूँ।

कण-कण है तेरा माँ
क्षण-क्षण है तेरा माँ।

मन में जो भाव हमारे,
कुछ सपने प्यारे-प्यारे।

सब तुझको अर्पित है,
सद्भाव समर्पित हैं।

अर्पण हैं तेरा माँ,
तर्पण है तेरा माँ।

वरदा सुखदा माँ!!!
तू मेरे लिए प्रकृति है।

जननी  ये तेरी बेटी,
तेरी ही अनुकृति है।

रचयिता
डॉ0 प्रवीणा दीक्षित,
हिन्दी शिक्षिका,
के.जी.बी.वी. नगर क्षेत्र,
जनपद-कासगंज।

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