बुद्धं शरणम् गच्छामि

बुद्ध पूर्णिमा का दिवस
देता यही प्रमाण,
हुए अवतरित धरा पर
गौतम बुद्ध महान।

धर्मम् शरणम गच्छामि.......

मन में जिज्ञासा प्रबल
बुद्धि बड़ी कुशाग्र,
दुखी देखकर जीवों को
हो जाते थे व्यग्र।

संघम् शरणम् गच्छामि.......

सब सुविधाएँ त्याग कर
धरा तपस्वी वेश,
घूम-घूम देने लगे
लोगों को उपदेश।

बुद्धं शरणम् गच्छामि......

जगती यह दुखःपूर्ण है
सोच हुआ वैराग्य,
शयन लीन पत्नी तनय
किया महल का त्याग।

धर्म शरणम गच्छामि........

जीवों को न सताइये
न करना ये पाप,
शुद्ध आचरण से सदा
कटता है संताप।

संघम् शरणम् गच्छामि......

उनकी शिक्षाएँ सुनी
लोगों  न धर ध्यान,
शिक्षाएँ सुनकर जगा
आर्यावर्त महान।

बुद्धं शरणम् गच्छामि.......

रचयिता
डॉ0 प्रवीणा दीक्षित,
हिन्दी शिक्षिका,
के.जी.बी.वी. नगर क्षेत्र,
जनपद-कासगंज।

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