माँ
माँ
अपने आप में एक परिपूर्ण शब्द, सारी कायनात को समेटे हुए वात्सल्य को पूरित करता शब्द 'माँ'।
युग युगांतर से चले आ रहे माँ के त्याग और प्यार के किस्से यूँ ही नहीं प्रचलित हैं। इस पृथ्वी पर या यह कह लीजिए इस ब्रह्मांड पर माँ एक ऐसी मूरत है, जो हर रिश्ते, धर्म, जात- पात, घृणा, स्वार्थ ऐसी अनगिनत खामियाँ जो किसी को नुकसान पहुँचाएँ, से ऊपर है। कहा भी गया है -
'पूत कपूत हो सकता है पर माता कुमाता नहीं हो सकती।'
कहने को तो "माँ" बहुत छोटा-सा शब्द है परन्तु देखा जाए तो यह न जाने कितने शब्दों के अर्थ को चरितार्थ करता है। 'माँ' का दर्जा पाने के लिए स्त्री एक जीव को अपने शरीर के अन्दर पालती है, तमाम परेशानियों को झेलते हुए उसे अपने रक्त से सींचती है, साँसें प्रदान कर अपार कष्ट सहते हुए उसे एक बच्चे के रूप में जन्म देती है। सकुशल बच्चे को जन्म देने का अहसास माँ के लिए अमृत प्राप्ति के अहसास से कम नहीं होता।
यह कहानी यहाँ समाप्त नहीं होती, यहाँ से तो शुरूआत होती है। एक नए रिश्ते की प्यार और वात्सल्य के एक धागे का जिसमें माँ और संतान बँध जाते हैं।
यह जो नया रिश्ता जन्म लेता है, यह मामूली नहीं है, यह अमर रिश्ता है क्योंकि 'माँ' शब्द की परिपूर्णता उसकी संतान से ही होती है। ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ जन्म देने वाली माँ ही अपनी सन्तान को अपने रक्त से सींचती है। किसी अनाथ या जरूरतमंद बच्चे को गोद लेकर उस पर अपना वात्सल्य लुटाने वाली माँ भी 'माँ' शब्द को परिपूर्ण करती है, वरना द्वापर युग में कृष्ण की दो-दो माँ नहीं होतीं। देवकी जिन्होंने उनको जन्म दिया और यशोदा जिन्होंने उनका लालन-पालन कर के उनको संस्कार और जीवन का मक़सद दिया।
देखा जाय तो माँ की महत्ता न तब कम थी, न आज कम है। गौर करिए धरती को माँ, अपने देश भारत को माँ, देवी को माँ क्यों कहा गया है? मेरी नजरों से देखिए तो धरती कष्ट सहकर अन्न उपजा कर मानव जाति का पेट भरती है तो उसे माँ कहा गया, भारत हमारी संस्कृति हमारी पहचान है इसलिए वो माँ है, देवी हमारी शक्ति है हमें उसके आशीर्वाद की जरूरत है, वो माँ है। भरण-पोषण, पहचान, शक्ति सब तो माँ से हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि "माँ" अपने आप में एक परिपूर्ण शब्द है।
आइये इस "मदर्स डे" पर प्रण लें कि हर 'माँ' को दिल से इज्जत, मान सम्मान देने के साथ - साथ उनको खुश रखने का पूरा प्रयास करेंगे।
"अपने हृदय में समेटकर अनमोल रत्न, हर रत्न को दे देना उसकी चमक।
माँ तेरा ही ये चमत्कार है, तुझको हृदय से नमस्कार है।
माँ है तो चल रहा संसार है, हर जगह नवजीवन का संचार है।"
संसार की सभी माओं को मेरा शत-शत नमन!!
लेखिका
संगीता भास्कर,
प्राथमिक विद्यालय बिस्टौली,
विकास खण्ड-जंगल कौड़िया,
जनपद-गोरखपुर।
Comments
Post a Comment