अपना अक्स
प्रकाश की वो पहली किरण,
सावन में खिलता वो पहला सुमन,
दे रहा है मुझे ये ही पैगाम
सोच ना अब कुछ भी अंजाम।
पर क्या है मैं बहक जाऊँगी इनसे
मेरा वजूद बचा पाएगा मुझे इनसे,
दिल है यही कहता
जूनूनी नहीं कभी ढहता।
खुद पर हो भरोसा जो तो तुझे पर्वत भी हिला नहीं सकता,
कोई भी बहका नहीं सकता,
सावन भी लुभा नहीं सकता,
कर्तव्य पथ से डिगा नहीं सकता।।
पाकर मंजिलें ही दम लेते हैं सूरमा,
जिंदगी में नही बनना मुझे केवल मनोरमा।
कुछ करके दिखाना है कुछ अपना बनाना है।
नाकि इन छोटे-छोटे झोंको से विचलित हो जाना है।।
मुझे तो अपना अक्स पाना है।
मुझे तो अपना अक्स पाना है।।
रचयिता
रुपाली श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय फरीदपुर सलेम,
विकास खण्ड-चायल,
जनपद-कौशाम्बी।
सावन में खिलता वो पहला सुमन,
दे रहा है मुझे ये ही पैगाम
सोच ना अब कुछ भी अंजाम।
पर क्या है मैं बहक जाऊँगी इनसे
मेरा वजूद बचा पाएगा मुझे इनसे,
दिल है यही कहता
जूनूनी नहीं कभी ढहता।
खुद पर हो भरोसा जो तो तुझे पर्वत भी हिला नहीं सकता,
कोई भी बहका नहीं सकता,
सावन भी लुभा नहीं सकता,
कर्तव्य पथ से डिगा नहीं सकता।।
पाकर मंजिलें ही दम लेते हैं सूरमा,
जिंदगी में नही बनना मुझे केवल मनोरमा।
कुछ करके दिखाना है कुछ अपना बनाना है।
नाकि इन छोटे-छोटे झोंको से विचलित हो जाना है।।
मुझे तो अपना अक्स पाना है।
मुझे तो अपना अक्स पाना है।।
रचयिता
रुपाली श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय फरीदपुर सलेम,
विकास खण्ड-चायल,
जनपद-कौशाम्बी।
सुन्दर और प्रभावशाली अभिव्यक्ति...लेखनी को नमन।।
ReplyDeleteNice rupali
ReplyDeleteAti sundar rachnatmak abhivyakti!
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