अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेषांक,84,मीनाक्षी सिंह,हाथरस
*अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेषांक*
*मिशन शिक्षण संवाद परिवार की बहनों की संघर्ष और सफ़लता की कहानी*
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=2342896952654555&id=1598220847122173
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*महिला सशक्तीकरण- 84*
(दिनाँक- 26 मई 2019)
नाम-मीनाक्षी सिंह
पद- सहायक अध्यापक (इ.प्र.अ.)
विद्यालय-प्रा.वि.धतरोई , सासनी,हाथरस
(दिनाँक- 26 मई 2019)
नाम-मीनाक्षी सिंह
पद- सहायक अध्यापक (इ.प्र.अ.)
विद्यालय-प्रा.वि.धतरोई , सासनी,हाथरस
सफलता एवं संघर्ष की कहानी :-
मेरी नियुक्ति नवंबर १५ में हुई। धतरोई जनसंख्या तथा क्षेत्रफल की दृष्टि से छोटा सा गांव है जिसमें प्रवेश करने से पहले एक प्राइवेट स्कूल तथा गांव से निकलने पर दूसरा प्राइवेट स्कूल है।
गांव में एक -दो परिवार छोड़कर सभी सामाजिक तथा आर्थिक रूप से समर्थ है । अतः अधिकांश बच्चे उन्हीं प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते थे।
चुनौतियां
१-उपस्थिति तथा नामांकन
२-विद्यालय गणवेश तथा व्यक्तिगत स्वच्छता
३-विचारो की अभिव्यक्ति में परेशानी
समाधान-
१-उपस्थिति तथा नामांकन बढ़ाने के लिए घर -घर जाकर संपर्क किया।
बच्चों के लिखित कार्य पर विशेष ध्यान दिया ।उनकी कापी कलरफुल कराई और उन्हें प्रेरित किया कि वे अपनी कापी अपने अड़ोस -पडोस में दिखाएं इससे प्रभावित होकर बच्चे आना शुरू हुए ।
बाल पाठशाला वाले नवाचार ने भी उपस्थिति तथा नामांकन बढ़ाने में मदद की। रथ
२- बच्चों को गणवेश की उपयोगिता के विषय में जागरूक किया ।
शरीर के बाहर तथा अन्दर की सफाई के तरीके रोज़ असेम्बली में बताए ।
३- सबसे ज्यादा परेशानी उन्हें बोलना सिखाने में हुई । प्रतिदिन एक कहानी सुनाईऔर फिर उसी कहानी को उनसे सुना ।
श्रृंखला बनाकर प्रश्नोत्तर याद कराए , हिंदी तथा अंग्रेजी की कविताएं याद कराईं।
उपलब्धि-
१- आज हमारे गांव का कोई बच्चा कक्षा १-५ तक उन प्राइवेट स्कूलों में न जाकर हमारे यहां आता है।
उपस्थिति २५-३०%से बढ़कर ६५-७०% हो गई।
२-बच्चे यूनिफॉर्म में साफ -सुथरे आने लगे ।
३- बच्चे वाक्पटु बने।
सामान्य विषयों पर अपने विचार रखने लगे ।
हिंदी तथा अंग्रेजी की कविताएं सुर -ताल में गाने लगे।
संदेश - बच्चे गीली मिट्टी होते हैं और शिक्षक कुम्हार जो उन्हें मनचाहे आकार में ढाल सकता है।
अतः अपनी जिम्मेदारी समझें।
मेरी नियुक्ति नवंबर १५ में हुई। धतरोई जनसंख्या तथा क्षेत्रफल की दृष्टि से छोटा सा गांव है जिसमें प्रवेश करने से पहले एक प्राइवेट स्कूल तथा गांव से निकलने पर दूसरा प्राइवेट स्कूल है।
गांव में एक -दो परिवार छोड़कर सभी सामाजिक तथा आर्थिक रूप से समर्थ है । अतः अधिकांश बच्चे उन्हीं प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते थे।
चुनौतियां
१-उपस्थिति तथा नामांकन
२-विद्यालय गणवेश तथा व्यक्तिगत स्वच्छता
३-विचारो की अभिव्यक्ति में परेशानी
समाधान-
१-उपस्थिति तथा नामांकन बढ़ाने के लिए घर -घर जाकर संपर्क किया।
बच्चों के लिखित कार्य पर विशेष ध्यान दिया ।उनकी कापी कलरफुल कराई और उन्हें प्रेरित किया कि वे अपनी कापी अपने अड़ोस -पडोस में दिखाएं इससे प्रभावित होकर बच्चे आना शुरू हुए ।
बाल पाठशाला वाले नवाचार ने भी उपस्थिति तथा नामांकन बढ़ाने में मदद की। रथ
२- बच्चों को गणवेश की उपयोगिता के विषय में जागरूक किया ।
शरीर के बाहर तथा अन्दर की सफाई के तरीके रोज़ असेम्बली में बताए ।
३- सबसे ज्यादा परेशानी उन्हें बोलना सिखाने में हुई । प्रतिदिन एक कहानी सुनाईऔर फिर उसी कहानी को उनसे सुना ।
श्रृंखला बनाकर प्रश्नोत्तर याद कराए , हिंदी तथा अंग्रेजी की कविताएं याद कराईं।
उपलब्धि-
१- आज हमारे गांव का कोई बच्चा कक्षा १-५ तक उन प्राइवेट स्कूलों में न जाकर हमारे यहां आता है।
उपस्थिति २५-३०%से बढ़कर ६५-७०% हो गई।
२-बच्चे यूनिफॉर्म में साफ -सुथरे आने लगे ।
३- बच्चे वाक्पटु बने।
सामान्य विषयों पर अपने विचार रखने लगे ।
हिंदी तथा अंग्रेजी की कविताएं सुर -ताल में गाने लगे।
संदेश - बच्चे गीली मिट्टी होते हैं और शिक्षक कुम्हार जो उन्हें मनचाहे आकार में ढाल सकता है।
अतः अपनी जिम्मेदारी समझें।
_✏संकलन_
*टीम मिशन शिक्षण संवाद।*
*टीम मिशन शिक्षण संवाद।*
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