माँ
सबसे प्यारी लगती माँ, सारे जग से न्यारी माँ।
हर घर और हर आँगन की, सुंदर शोभा लगती माँ।
तपते सूरज की गर्मी में, ठण्डी शीतल छाँव है माँ।
गर्म रेतीले मरुस्थल में, निर्मल-शीतल झील है माँ।
नन्हें जीव को कोख में रखकर, सींचती अपने लहू से माँ।
नये जीव को जीवन देने, पुनर्जन्म लेती है माँ।
नवजीवन को देने वाली, जग में ईश्वर तुल्य है माँ।
पुत्री, भार्या, माता रूप में, जग में पूजी जाती माँ।
सारी रात गीले में सोकर, सूखे का सुख देती माँ।
गोद में अपनी लेकर-लोरी, गाकर हमें सुलाती माँ।
दिन का चैन-सूकून रात का, सब करती न्यौछावर माँ।
विपदा गर पड़ जाए तो, करती प्राण न्यौछावर माँ।
भूखा गर रह जाये बच्चा, पी पानी रह जाती माँ।
प्यासा गर रह जाये बच्चा, बिन पानी रह जाती माँ।
गिर-गिर कर उठ-उठ चलना, हाथ पकड़ सिखलाती माँ।
अच्छाई के पद चिन्हों पर, चलना सदा बतलाती माँ।
सादा जीवन - उच्च विचार, सदा याद दिलवाती माँ।
बड़े-बुजुर्ग और गुरूजनों का, आदर करना सिखलाती माँ।
जीवन को महकाने वाली, बगिया की रखवाली माँ।
अपने घर- घरौंदे की, खुद रक्षा करने वाली माँ।
बिना थके और बिना रुके, नदिया सी निरन्तर बहती माँ।
हर दुःख-सुख में सदा एक सी, ठहरे पानी की झील सी माँ।
सद्विचार और सद्गुण की, भरी खजाना लगती माँ।
मीठी, मिसरी सी वाणी से, ओतप्रोत सी लगती माँ।
खट्टी कभी, कभी मीठी सी, कभी तीखी सी लगती माँ।
पर हर रूप में ममत्व की, प्रतिमूर्ति सी लगती माँ।
पावन-निश्छल, निस्वार्थ ये रिश्ता, केवल जग में निभाती माँ।
इसीलिए ईश्वर से ज्यादा, महत्व जगत में रखती माँ।
जन्म सहस्त्रों लेकर भी, चुका सका न कर्ज कोई माँ।
देकर शुभाशीष तुम अपना, करो उद्धार जन्म मेरा माँ।
तेरी ममता की छाँव घनी में, बीते ये जीवन मेरा माँ।
बस यही प्रार्थना ईश्वर से, हर जन्म में हो तू मेरी माँ।
मैं अंश तेरा तू मेरी माँ, मैं लाल तेरा तू मेरी माँ।।
रचयिता
सुप्रिया सिंह,
इं0 प्र0 अ0,
प्राथमिक विद्यालय-बनियामऊ 1,
विकास क्षेत्र-मछरेहटा,
जनपद-सीतापुर।
हर घर और हर आँगन की, सुंदर शोभा लगती माँ।
तपते सूरज की गर्मी में, ठण्डी शीतल छाँव है माँ।
गर्म रेतीले मरुस्थल में, निर्मल-शीतल झील है माँ।
नन्हें जीव को कोख में रखकर, सींचती अपने लहू से माँ।
नये जीव को जीवन देने, पुनर्जन्म लेती है माँ।
नवजीवन को देने वाली, जग में ईश्वर तुल्य है माँ।
पुत्री, भार्या, माता रूप में, जग में पूजी जाती माँ।
सारी रात गीले में सोकर, सूखे का सुख देती माँ।
गोद में अपनी लेकर-लोरी, गाकर हमें सुलाती माँ।
दिन का चैन-सूकून रात का, सब करती न्यौछावर माँ।
विपदा गर पड़ जाए तो, करती प्राण न्यौछावर माँ।
भूखा गर रह जाये बच्चा, पी पानी रह जाती माँ।
प्यासा गर रह जाये बच्चा, बिन पानी रह जाती माँ।
गिर-गिर कर उठ-उठ चलना, हाथ पकड़ सिखलाती माँ।
अच्छाई के पद चिन्हों पर, चलना सदा बतलाती माँ।
सादा जीवन - उच्च विचार, सदा याद दिलवाती माँ।
बड़े-बुजुर्ग और गुरूजनों का, आदर करना सिखलाती माँ।
जीवन को महकाने वाली, बगिया की रखवाली माँ।
अपने घर- घरौंदे की, खुद रक्षा करने वाली माँ।
बिना थके और बिना रुके, नदिया सी निरन्तर बहती माँ।
हर दुःख-सुख में सदा एक सी, ठहरे पानी की झील सी माँ।
सद्विचार और सद्गुण की, भरी खजाना लगती माँ।
मीठी, मिसरी सी वाणी से, ओतप्रोत सी लगती माँ।
खट्टी कभी, कभी मीठी सी, कभी तीखी सी लगती माँ।
पर हर रूप में ममत्व की, प्रतिमूर्ति सी लगती माँ।
पावन-निश्छल, निस्वार्थ ये रिश्ता, केवल जग में निभाती माँ।
इसीलिए ईश्वर से ज्यादा, महत्व जगत में रखती माँ।
जन्म सहस्त्रों लेकर भी, चुका सका न कर्ज कोई माँ।
देकर शुभाशीष तुम अपना, करो उद्धार जन्म मेरा माँ।
तेरी ममता की छाँव घनी में, बीते ये जीवन मेरा माँ।
बस यही प्रार्थना ईश्वर से, हर जन्म में हो तू मेरी माँ।
मैं अंश तेरा तू मेरी माँ, मैं लाल तेरा तू मेरी माँ।।
रचयिता
सुप्रिया सिंह,
इं0 प्र0 अ0,
प्राथमिक विद्यालय-बनियामऊ 1,
विकास क्षेत्र-मछरेहटा,
जनपद-सीतापुर।
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