गौतम बुद्ध
हे! करुणा के सागर महान,
बोधिसत्व प्रज्ञा के आगर।
हे! युगनायक हे महाश्रमण,
है प्रणाम तव सहृदय सादर।
मानवता हित सूत्र दिए जो,
उपकार किया उद्धार किया।
चल पड़े भिक्षु बन कितने,
अमर बोध वह उद्बोध दिया।
तृप्त किया तपते हृदयों को,
दुख से पीड़ित जन मन को।
करुणा बरसी उर शांति मिली,
खंडित कर मिथ्या प्रचलन को।
भेद भाव मानवता के टूटे फिर,
आकुल मन को शांति मिली।
जीवन का सच समझाया जो,
उससे चिन्तन की भ्रांति मिटी।
पीड़ित मानवता को संबल दे,
निज की सत्ता का बोध कराया।
जीवन पावन शुचि आचारों का,
करने को, पंच महाव्रत बतलाया।
जन मन स्वर में था बुद्धं शरणं,
धम्मं संघं शरणं गच्छामि वयम।
हो गयी सुखी यह मानवता फिर,
टूटा मानव मन का स्वयं अहम्।
हे! करुणावत्सल हे! ध्यानमूर्ति,
भावों से पुष्पित है हृदय हमारा।
हे! चिर ज्योतिपुंज हे महातपस्वी,
जन मन अन्तर में हो उजियारा।
रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला,
जनपद -सीतापुर।
बोधिसत्व प्रज्ञा के आगर।
हे! युगनायक हे महाश्रमण,
है प्रणाम तव सहृदय सादर।
मानवता हित सूत्र दिए जो,
उपकार किया उद्धार किया।
चल पड़े भिक्षु बन कितने,
अमर बोध वह उद्बोध दिया।
तृप्त किया तपते हृदयों को,
दुख से पीड़ित जन मन को।
करुणा बरसी उर शांति मिली,
खंडित कर मिथ्या प्रचलन को।
भेद भाव मानवता के टूटे फिर,
आकुल मन को शांति मिली।
जीवन का सच समझाया जो,
उससे चिन्तन की भ्रांति मिटी।
पीड़ित मानवता को संबल दे,
निज की सत्ता का बोध कराया।
जीवन पावन शुचि आचारों का,
करने को, पंच महाव्रत बतलाया।
जन मन स्वर में था बुद्धं शरणं,
धम्मं संघं शरणं गच्छामि वयम।
हो गयी सुखी यह मानवता फिर,
टूटा मानव मन का स्वयं अहम्।
हे! करुणावत्सल हे! ध्यानमूर्ति,
भावों से पुष्पित है हृदय हमारा।
हे! चिर ज्योतिपुंज हे महातपस्वी,
जन मन अन्तर में हो उजियारा।
रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला,
जनपद -सीतापुर।
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