दीवार नेकी की

हमारी आस में विश्वास में "दीवार नेकी की",
सदा आगे बढ़े ऊँची उठे "दीवार नेकी की"।

रहूँ अब मैं न मैं, बनकर हमें अब "हम" दिखाना है,
मिटे पीड़ा मनुजता की हमें यह भाव लाना है,
न बिखरें हम, चलें मिलकर यही है भावना मन की
सदा आगे बढ़े- - -

चलो माँ भारती को हम हरी चूनर का आँचल दें,
तपे हैं धूप में उन मरूथलों को एक सावन दें,
धरा की प्यास बुझ जाए यही अरमान है बाकि
सदा आगे बढ़े- - -

सभी के साथ की हर हाथ की इसको ज़रूरत है,
इसे ऊँचा उठाने के लिए "मन" की ज़रूरत है,
भरो वो रंग इसमें, कल्पना जिनकी कभी की थी
सदा आगे बढ़े- - -

जो मैं हूँ क्योंकि हम हैं का, हमें आदर्श पाना है,
तो सेवा भाव का दीपक हमें, मिलकर जलाना है,
समर्पित भाव से गढ़ते चलें "दीवार नेकी की".... 

सदा आगे बढ़े, ऊँची उठे "दीवार नेकी की"
हमारी आस में विश्वास में "दीवार नेकी की"।।

रचयिता
गौरव मिश्र,
सहायक शिक्षक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय पेंग,
विकास क्षेत्र-सुरसा,
जनपद-हरदोई

Comments

  1. नेक नीयत और सुदृढ़ इच्छाशक्ति की शानदार झलक।....अति सुंदर 👌

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