अजर-अमर हो हिंदी भाषा
हिंदी भाषा श्रेष्ठ भाषा, सारे जहां में सर्वश्रेष्ठ भाषा।
ये ही है मान की भाषा, ये ही है सम्मान की भाषा।
युगों-युगों से प्रचलित जग में भारत की सर्वोत्कृष्ट भाषा।
सारे जग ने इसको माना पूर्णरूपेण वैज्ञानिक भाषा।
जो लिखा जायेगा उसको वही पढ़ा भी जायेगा।
ये सर्वश्रेष्ठ गुण है इसका महत्व पता चल जायेगा।
सब भाषाओं की है जननी सारे जग ने माना है।
है सबसे प्राचीन ये भाषा सारे जग ने जाना है।
सुंदर-सुंदर वर्ण मिलकर सुंदर शब्द बनाते हैं।
सुंदर-सुंदर शब्द मिलकर सुंदर वाक्य बनाते हैं।
रस, छन्द, सन्धि, समास, अलंकार मिल सब शोभा बढ़ाते हैं।
कविता, कहानी, गद्य- पद्य, उपन्यास सबके मन को भाते हैं।
विभिन्न उप भाषाओं का इसमें सुंदर संगम मिलता है।
विभिन्न बोलियों का इसमें समावेश भी मिलता है
अनेकार्थी-समानार्थी, मुहावरें और कहावतें,
दोहा, छन्द, सोरठा, चौपाई, इसकी शोभा बढ़ाते हैं।
उर्दू के संग मिलजुल कर ये अज़ब कहर ही ढाती है।
हिंदी और उर्दू दोनों ही सगी बहने कहलाती हैं।
उदगम् संस्कृत है इसका सबको ये बतलाती है।
हिंदी, हिन्दू, हिंदुस्तान जगत में जानी जाती है।
पर अब हिंदुस्तान ही इसके महत्व को भूल रहा।
अंग्रेजी के मोह में पड़कर हिंदी को तुच्छ बोल रहा।
सम्भल जाओ सब देशवासियों अभी बचा है वक्त।
वरना अपने देश में ही हिंदी का खो जायेगा अस्तित्व।
सरल, सहज, सुंदर भाषा का मिट जायेगा नाम यहाँ।
फ़िर नही खोज पाओगे चाहे ढूँढ लो सारा जहां।
एक बार सब सुनो ध्यान से माँ भारती पुकारती।
हिंदी की तुम लाज बचा लो, बस यही वर माँगती।
हिंदी के माथे की बिंदी, बस बच जाये भाषा हिंदी।
आओ मिलकर सब प्रण लें, अजर-अमर हो भाषा हिंदी।
अजर-अमर हो भाषा हिंदी ।।
रचयिता
सुप्रिया सिंह,
इं0 प्र0 अ0,
प्राथमिक विद्यालय-बनियामऊ 1,
विकास क्षेत्र-मछरेहटा,
जनपद-सीतापुर।
ये ही है मान की भाषा, ये ही है सम्मान की भाषा।
युगों-युगों से प्रचलित जग में भारत की सर्वोत्कृष्ट भाषा।
सारे जग ने इसको माना पूर्णरूपेण वैज्ञानिक भाषा।
जो लिखा जायेगा उसको वही पढ़ा भी जायेगा।
ये सर्वश्रेष्ठ गुण है इसका महत्व पता चल जायेगा।
सब भाषाओं की है जननी सारे जग ने माना है।
है सबसे प्राचीन ये भाषा सारे जग ने जाना है।
सुंदर-सुंदर वर्ण मिलकर सुंदर शब्द बनाते हैं।
सुंदर-सुंदर शब्द मिलकर सुंदर वाक्य बनाते हैं।
रस, छन्द, सन्धि, समास, अलंकार मिल सब शोभा बढ़ाते हैं।
कविता, कहानी, गद्य- पद्य, उपन्यास सबके मन को भाते हैं।
विभिन्न उप भाषाओं का इसमें सुंदर संगम मिलता है।
विभिन्न बोलियों का इसमें समावेश भी मिलता है
अनेकार्थी-समानार्थी, मुहावरें और कहावतें,
दोहा, छन्द, सोरठा, चौपाई, इसकी शोभा बढ़ाते हैं।
उर्दू के संग मिलजुल कर ये अज़ब कहर ही ढाती है।
हिंदी और उर्दू दोनों ही सगी बहने कहलाती हैं।
उदगम् संस्कृत है इसका सबको ये बतलाती है।
हिंदी, हिन्दू, हिंदुस्तान जगत में जानी जाती है।
पर अब हिंदुस्तान ही इसके महत्व को भूल रहा।
अंग्रेजी के मोह में पड़कर हिंदी को तुच्छ बोल रहा।
सम्भल जाओ सब देशवासियों अभी बचा है वक्त।
वरना अपने देश में ही हिंदी का खो जायेगा अस्तित्व।
सरल, सहज, सुंदर भाषा का मिट जायेगा नाम यहाँ।
फ़िर नही खोज पाओगे चाहे ढूँढ लो सारा जहां।
एक बार सब सुनो ध्यान से माँ भारती पुकारती।
हिंदी की तुम लाज बचा लो, बस यही वर माँगती।
हिंदी के माथे की बिंदी, बस बच जाये भाषा हिंदी।
आओ मिलकर सब प्रण लें, अजर-अमर हो भाषा हिंदी।
अजर-अमर हो भाषा हिंदी ।।
रचयिता
सुप्रिया सिंह,
इं0 प्र0 अ0,
प्राथमिक विद्यालय-बनियामऊ 1,
विकास क्षेत्र-मछरेहटा,
जनपद-सीतापुर।
Atulniya rachna mam
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