बेटियाँ

इंसा को मिली रब की नेमत है बेटियाँ।
इस जमीं की दूसरी जन्नत हैं बेटियाँ।

जब तोतली जुबां से वो बोलती है माँ
अहसासों का करिश्मा, कुदरत हैं बेटियाँ।

महके है इस कदर घर के दर ओ दीवार
फिजायें जिसमें छायी गुलशन हैं बेटियाँ।

जिसने बचा के रखा आंधियों से है चराग़
करती रही हमेशा हिफाजत हैं बेटियाँ ।

बुलन्दी की नज़ीर बन ईमान की अमीर
दहलीज पे जिसके खड़ी शोहरत हैं बेटियाँ।

खोये जमीर हैं खड़े इस जहाँ के लोग
जो मौत बख़्शते अशरफ़ हैं बेटियाँ।

ए जुल्म ढाने वालों सुन लो ये खोल कान
अपनी पे आ गयी तो शामत हैं बेटियाँ ।

है मुल्क की तरक्की में आगे खड़ी रही
"मन" नाज़ इन पे करना अज़मत है बेटियाँ।
             
रचयिता
गीता गुप्ता "मन"
प्राथमिक विद्यालय मढ़िया फकीरन,
विकास क्षेत्र - बावन,
जनपद - हरदोई।

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