भारत का मान है हिन्दी
कविता
चलो प्यार का दीप जलायें,
'अ' से अनार 'आ' से आम।
मिलकर हम सब आपस में,
एक दो तीन चार पढ़ायें।
सरल, सहज, सुग्राह्य मातृभाषा,
अपनेपन की जो रीत दिखाये।
गरिमा है इससे देश की मेरे,
विश्व में भारत का मान बनाये।
हृदय में हर पल बसने वाली,
अभिव्यक्ति में प्राण बसाये।
वीरों की गाथा सरिता में,
वीररस से ही डुबकी लगाये।
हिन्दी है हिन्दुस्तान की भाषा,
गर्व से अपना अभिमान बताये।
बाँधे जो राष्ट्र एका के बंधन में,
ऐसे मजबूत सूत्र धाग बनाये।
तोड़ गुलामी की जंजीरों को,
जिसने आजादी की मंजिल पाए।
ऐसे वीरों की प्रसूता है हिन्दी,
बिना इसके "हिन्द" थम-सा जाए।
ले संकल्प आज अभी से,
इसका हम विस्तार बढ़ायें।
हिन्दी भाषा की महत्ता को,
विश्व पताका पर फहरायें।
चलो प्यार का दीप जलायें,
'अ' से अनार 'आ' से आम।
मिलकर हम सब आपस में,
एक दो तीन चार पढ़ायें।
गजल
भारत की आन है हिन्दी, मान है हिन्दी,
हर "हिन्दुस्तानी" की पहचान है हिन्दी।
नाजों से हैं पली - बढ़ी शुचिता इसकी,
भावों की अभिव्यक्त में रसखान है हिन्दी।
ऊर्दू , कन्नड़, तमिल, मराठी हर भाषा-भाषी,
करूण, वीर, वात्सल्य का गुणगान है हिन्दी।
हिन्दी के आँचल में पले - बढ़े शब्द श्रंगार,
तुलसी, कबीर, दादू, सूर से अभिमान है हिन्दी।
गद्य-पद्य की हर विधा में जलधि सी गहराई है,
खण्डकाव्य, महाकाव्य की खानदान है हिन्दी।
रचयिता
वन्दना यादव " गज़ल"
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक ,
डोभी , जौनपुर।
चलो प्यार का दीप जलायें,
'अ' से अनार 'आ' से आम।
मिलकर हम सब आपस में,
एक दो तीन चार पढ़ायें।
सरल, सहज, सुग्राह्य मातृभाषा,
अपनेपन की जो रीत दिखाये।
गरिमा है इससे देश की मेरे,
विश्व में भारत का मान बनाये।
हृदय में हर पल बसने वाली,
अभिव्यक्ति में प्राण बसाये।
वीरों की गाथा सरिता में,
वीररस से ही डुबकी लगाये।
हिन्दी है हिन्दुस्तान की भाषा,
गर्व से अपना अभिमान बताये।
बाँधे जो राष्ट्र एका के बंधन में,
ऐसे मजबूत सूत्र धाग बनाये।
तोड़ गुलामी की जंजीरों को,
जिसने आजादी की मंजिल पाए।
ऐसे वीरों की प्रसूता है हिन्दी,
बिना इसके "हिन्द" थम-सा जाए।
ले संकल्प आज अभी से,
इसका हम विस्तार बढ़ायें।
हिन्दी भाषा की महत्ता को,
विश्व पताका पर फहरायें।
चलो प्यार का दीप जलायें,
'अ' से अनार 'आ' से आम।
मिलकर हम सब आपस में,
एक दो तीन चार पढ़ायें।
गजल
भारत की आन है हिन्दी, मान है हिन्दी,
हर "हिन्दुस्तानी" की पहचान है हिन्दी।
नाजों से हैं पली - बढ़ी शुचिता इसकी,
भावों की अभिव्यक्त में रसखान है हिन्दी।
ऊर्दू , कन्नड़, तमिल, मराठी हर भाषा-भाषी,
करूण, वीर, वात्सल्य का गुणगान है हिन्दी।
हिन्दी के आँचल में पले - बढ़े शब्द श्रंगार,
तुलसी, कबीर, दादू, सूर से अभिमान है हिन्दी।
गद्य-पद्य की हर विधा में जलधि सी गहराई है,
खण्डकाव्य, महाकाव्य की खानदान है हिन्दी।
रचयिता
वन्दना यादव " गज़ल"
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक ,
डोभी , जौनपुर।
Comments
Post a Comment