अपना सफ़र जारी तो रख....

राह में हैं ग़र मुश्किलें
चलना सँभल-सँभल
तूफ़ां में है कश़्ती तो
बढ़ना ठहर-ठहर
लहरों को पार कर
जो साहिल तक आ गए
फिर भी न मिले मंजिल
तो रहना हाँ, धीरज धर
तिमिर को चीर कर
निकलेगा सूरज एक दिन
बस....
हौसले की ढाल न तजना
यूँ मायूस होकर
हर डाल पर फूल
नहीं हैं खिलते
खुशबू से हर ग़ुल
अक्सर नहीं महकते
फिर भी  इनसे आबाद
होता है हर गुलिस्तां ..
पेड़ों पर हर बरस
फल नहीं हैं लगते
पर...
नई आस लिए
हर रोज़ हैं वे बढ़ते।
माना,  कि आज...
गर्दिश में हैं तेरे सितारे...
ख़्वाहिशों की यहाँ
हैं, लम्बी बहुत कतारें....
पर याद रख...
इन कतारों में इक कतार
तेरी ख़्वाहिशों की भी होगी
तेरी कोशिशों से जीत
हाँ, तुझको ही मिलेगी
छलके हैं जो अश़्क आज
वो इक दिन ...
मोती बन चमकेंगें
बस.....
शिद्दत से अंजाम देकर
तू, अपना कर्म करता चल
बाधाओं के पत्थर हटा
अपना सफ़र जा़री तो रख....

बनेंगें रास्ते
तू कदम तो  बढ़ा
मिलेगी मंज़िल
ज़श्न होगा जीत का
गुनगुनाएगी ज़मीं
झूमेगा ये आसमां
बस....
शिद्दत से अंजाम देकर
तू कर्म करता चल
बाधाओं के पत्थर हटा
अपना सफ़र ज़ारी तो रख...

रचयिता
सारिका रस्तोगी,
सहायक अध्यापिका,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय फुलवरिया,
जंगल कौड़िया,
गोरखपुर।

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