उड़ान
एक बार फिर,
दहक जाए चिन्गारी।
फड़कने लगे,
लहू शिराओं का।
दृष्टि में हों,
आँख चिड़िया की।
श्रेष्ठ अर्जुन सा,
अंदाज हो निशाने का।
लक्ष्य के प्रति,
दीवाने हो जाओ।
अब समय आ गया,
बुझे लौ को जलाने का।
लहरों से बहुत टकराए,
साहिल तक आ जाओ।
मंजिल को इंतजार है,
तुम्हारे पास आने का।
तोड़ दो उन बेड़ियों को,
जो तुम्हें हैं रोकते।
जरुरत "उड़ान" की है,
नहीं ठहर जाने का।
रचयिता
निधि लता सिंह,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय नईयापार खुर्द,
विकास क्षेत्र-पिपराइच,
जनपद-गोरखपुर।
दहक जाए चिन्गारी।
फड़कने लगे,
लहू शिराओं का।
दृष्टि में हों,
आँख चिड़िया की।
श्रेष्ठ अर्जुन सा,
अंदाज हो निशाने का।
लक्ष्य के प्रति,
दीवाने हो जाओ।
अब समय आ गया,
बुझे लौ को जलाने का।
लहरों से बहुत टकराए,
साहिल तक आ जाओ।
मंजिल को इंतजार है,
तुम्हारे पास आने का।
तोड़ दो उन बेड़ियों को,
जो तुम्हें हैं रोकते।
जरुरत "उड़ान" की है,
नहीं ठहर जाने का।
रचयिता
निधि लता सिंह,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय नईयापार खुर्द,
विकास क्षेत्र-पिपराइच,
जनपद-गोरखपुर।
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