छिपकली

चली-चली वो चली-चली
दीवारों पर देखो छिपकली
खा खाकर कीट-पतंगे
मोटी ताजी पली ये छिपकली।
सबके घरों में रहती है ऐसे
परिवार की सदस्य हो जैसे
करने को कीटों में खलबली
बिल से निकली छिपकली।
दीवारों पर खूब दौड़ लगाती
सच में कितनी अजब बात है
टूट कर पूंछ फिर आ जाती
यह तो और भी गजब बात है।
साथ में रहती सबको डराती
डरा डरा कर खुद छिप जाती
जाने कौन से फूल की है कली
काली, भूरी, पीली ये छिपकली।

रचयिता
सचिन कुमार कश्यप, 
सहायक अध्यापक, 
उच्च प्राथमिक विद्यालय तीतरवाड़ा,
विकास क्षेत्र-कैराना,
जनपद-शामली।

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