हिंदी हिंदुस्तान की
शोभित
माथे परे बिंदी सी, हिंदी
हिंदुस्तान की
शोभित माथे परे बिंदी सी, हिंदी हिंदुस्तान की।
ललित शोभित माथे परे बिंदी सी, हिंदी हिंदुस्तान की
शोभित माथे परे बिंदी सी, हिंदी हिंदुस्तान की।
ललित राष्ट्र भाषा प्रतीक है, राष्ट्रीय अभिमान की।।
सुता लाड़ली देववाणी की है , हिंदी भाषा अपनी।
अखिल हिन्द की भाषाओँ की, हिंदी खास बड़ी बहिनी।।
गले लगाती भेद मिटाती, यह गरीब धनवान की।
शोभित माथे परे बिंदी सी, हिंदी हिंदुस्तान की।।
है अनेकता किन्तु एकता का, देती सन्देश है।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सबका प्यारा देश है।।
बांध रही है एक सूत्र में, रक्षक है सम्मान की।
शोभित माथे परे बिंदी सी, हिंदी हिंदुस्तान की।।
यह अतीत का गौरव है, यह संस्कृति की पोषक है।
समता न्याय संस्कारों की , मानो यह उद्घोषक है।।
सामंजस्य युक्ति है हिंदी की, अनपढ़ की विद्वान की।
शोभित माथे परे बिंदी सी, हिंदी हिंदुस्तान की।।
साहित्यिक, समृधि भाव, अभिव्यक्ति सशक्त प्रभावी है।
सरल,सुबोध,मृदु है यह. जनमानस की मनभावी है।।
सबकी प्यारी अति सुकुमारी, बालक,वृद्ध, जवान की।
शोभित माथे परे बिंदी सी, हिंदी हिंदुस्तान की।।
भारतेन्दु का यदि हिंदीमय, हिंदुस्तान बनाना है।
पढ़े और पढ़ायें, सीखे हिंदी, भाषा को अपनाना है।।
सच्ची देश भक्ति है, सुभाष हिंदी के उत्थान की।
शोभित माथे परे बिंदी सी, हिंदी हिंदुस्तान की।।
ज्ञान कई भाषाओँ का हो, इससे कब इनकार है।
बोलचाल में केवल मातृ भाषा का ही अधिकार है।।
हिंदी भाषा से ही, रक्षा सम्भव स्वाभिमान की।
शोभित माथे परे बिंदी सी, हिंदी हिंदुस्तान की।।
रचयिता
सुभाष कुमार पाण्डेय,
प्रभारी अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय रमपुरा,
विकास खण्ड–शाहबाद,
जनपद-रामपुर।
शोभित माथे परे बिंदी सी, हिंदी हिंदुस्तान की।
ललित शोभित माथे परे बिंदी सी, हिंदी हिंदुस्तान की
शोभित माथे परे बिंदी सी, हिंदी हिंदुस्तान की।
ललित राष्ट्र भाषा प्रतीक है, राष्ट्रीय अभिमान की।।
सुता लाड़ली देववाणी की है , हिंदी भाषा अपनी।
अखिल हिन्द की भाषाओँ की, हिंदी खास बड़ी बहिनी।।
गले लगाती भेद मिटाती, यह गरीब धनवान की।
शोभित माथे परे बिंदी सी, हिंदी हिंदुस्तान की।।
है अनेकता किन्तु एकता का, देती सन्देश है।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सबका प्यारा देश है।।
बांध रही है एक सूत्र में, रक्षक है सम्मान की।
शोभित माथे परे बिंदी सी, हिंदी हिंदुस्तान की।।
यह अतीत का गौरव है, यह संस्कृति की पोषक है।
समता न्याय संस्कारों की , मानो यह उद्घोषक है।।
सामंजस्य युक्ति है हिंदी की, अनपढ़ की विद्वान की।
शोभित माथे परे बिंदी सी, हिंदी हिंदुस्तान की।।
साहित्यिक, समृधि भाव, अभिव्यक्ति सशक्त प्रभावी है।
सरल,सुबोध,मृदु है यह. जनमानस की मनभावी है।।
सबकी प्यारी अति सुकुमारी, बालक,वृद्ध, जवान की।
शोभित माथे परे बिंदी सी, हिंदी हिंदुस्तान की।।
भारतेन्दु का यदि हिंदीमय, हिंदुस्तान बनाना है।
पढ़े और पढ़ायें, सीखे हिंदी, भाषा को अपनाना है।।
सच्ची देश भक्ति है, सुभाष हिंदी के उत्थान की।
शोभित माथे परे बिंदी सी, हिंदी हिंदुस्तान की।।
ज्ञान कई भाषाओँ का हो, इससे कब इनकार है।
बोलचाल में केवल मातृ भाषा का ही अधिकार है।।
हिंदी भाषा से ही, रक्षा सम्भव स्वाभिमान की।
शोभित माथे परे बिंदी सी, हिंदी हिंदुस्तान की।।
रचयिता
सुभाष कुमार पाण्डेय,
प्रभारी अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय रमपुरा,
विकास खण्ड–शाहबाद,
जनपद-रामपुर।
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