बचपन की होली
याद करूँ बचपन की होली,
सुन्दर, स्वप्न सरीखा है ।
रिश्तों की अनुभूति कहाँ अब,
रंग भी एकदम फीका है ।।
ढ़ोलक और मंजीरे की,
थाप कहाँ हम सुनते हैं ।
गीतों का माधुर्य खो गया,
सोचो कैसे हम रहते हैं ।।
आओ फिर से फगुवा गायें,
होली में हुड़दंग मचायें ।
बचपन में जो खेली होली,
आज उसी से रंग चुरायें ।।
आओ प्यारे मन के कर से,
एक दूजे को रंग लगाएँ ।
पावन होली शुभ हो सबका,
ऐसा आज मनायें हम।।
रचयिता
नरेंद्र बहादुर सिंह,
नरेंद्र बहादुर सिंह,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय भरारी,
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