परीक्षा प्रणाली का क्रमिक पतन
आदर्श स्थिति
परीक्षा कब हो गयी, विद्यार्थी को पता ही नहीं चलता था क्योंकि गुरुकुल प्रणाली में गुरु की गहन दृष्टि से विद्यार्थी का सतत मूल्यांकन होता रहता था।
बाद में
लिखित परीक्षा शुरू हुई क्योंकि गुरुकुल प्रणाली समाप्त होने से गुरु और विद्यार्थी के पारस्परिक सम्बन्ध शिथिल हो गये।
लेकिन लिखित परीक्षा में विद्यार्थी ईमानदारी से लिखते थे क्योंकि संस्कार अभी भी थे।
पतन शुरू
जब विद्या की अपेक्षा अंक और चरित्र की अपेक्षा नौकरी अधिक महत्त्वपूर्ण हो गयी तो परीक्षार्थी छुपकर नक़ल करने लगे।
पतन बढ़ा
अब शिक्षा की दुकानों के प्रबंधक अपनी दुकान चमकाने के लिए खुद नकल कराने लगे।
पतन और बढ़ने पर
अब अन्य विद्यार्थियों में भी डंके की चोट पर नक़ल करने का दुस्साहस आ गया। ईमानदार कक्ष निरीक्षक प्रताड़ित होने लगे।
पतन की पराकाष्ठा
विद्यार्थी और परीक्षक दोनों को चरित्रहीन मानते हुए 'flying squad' 'cctv camera' आदि का प्रयोग करना पड़ रहा है।
फिर भी बेतहाशा नक़ल और हर step पर जालसाजियों की ख़बरें आम।
निष्कर्ष :
विद्यार्थी बढ़े, शिक्षा बढ़ी, जागरूकता बढ़ी, विज्ञान और तकनीक बढ़े पर चरित्र नष्ट हो गया।
और
राष्ट्र के असली गौरव और सच्ची उन्नति का आधार उसके नागरिकों का चरित्र होता है।
क्या इस सच्चाई को अस्वीकार किया जा सकता है!!!
अतः राष्ट्रोत्थान की दृष्टि से विद्यार्थियों में संस्कारों का बीजारोपण हमारा मुख्य कर्तव्य होना चाहिए।
लेखक
प्रशांत अग्रवाल,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय डहिया,
विकास क्षेत्र फतेहगंज पश्चिमी,
जिला बरेली (उ.प्र.)।
बिल्कुल आज नैतिक मूल्यों के लिए नैतिक शिक्षा नामक विषय ही खत्म कर दिया गया है
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