तपकर निखरता है शिक्षक

हम अध्यापक है और हमेशा अपने छात्र छात्राओं का भला चाहते हैं पूरे मन से पढ़ाते हैं इंसान हैं कभी-कभी परेशान भी हो जाते हैं हमारे बच्चे विद्यालय में रोज नहीं आते पेंसिल किताब नहीं लाते हैं,  पढ़ते नहीं, न जाने कितनी शिकायतें सही है और हमारी सबसे बड़ी विशेषता है कि बच्चे को पास भी करना है अगर वह अयोग्य है तो रिजल्ट लेकर मुझसे उम्र में थोड़ा बड़ा भाई बहन जब यह गाँव भर में कहता है कि अरे देखो इसे पढ़ना तो अच्छा नहीं लिख भी ठीक से नहीं पाता फिर भी इसकी मैडम ने पास कर दिया तो सोच हमारा मन जार जार रोता है। जब हमारे द्वारा बनाए गए कार्य को संपूर्ण न मानकर अभिभावक उन शिक्षकों से ट्यूशन पढ़ाते हैं जिनके पास कोई अध्यापन की योग्यता भी नही है तो भी मन बहुत दुःखी होता है। 
जब विद्यालय में एक अध्यापक कुछ अलग हट कर करता है तो उपहास, आलोचना का पात्र बनता हैं तो भी मन परेशान हो जाता है। जब परेशान हो तो अपने आस -पास दिव्यांग बच्चों के पास होकर तो आइए, जब आँखें न होने पर भी, सुन न सकने पर भी, बोल न पाने पर भी वह बच्चा आपकी बातों को सुनता है, समझता है, उत्तर देता है तो लगता है उसे पढ़ाने वाला शिक्षक साक्षात ईश्वर है, तो फिर हम अपनी सारी शिकायतें भूलकर अपने विद्यालय में जीवंत ऊर्जा के साथ भर जाते हैं तब कुछ भी दिखाई नही देता न आलोचना, न अवहेलना, न अकेलापन लगता है। 

हम उस परमपिता का अंश हैं जिसने इस सुंदर धरा पर हमें इसे और सुंदर बनाने के लिये भेजा है। आप सबसे बरसों पुराना निजी अनुभव को इस आशा से बाँटा है जैसे उस पल जब मैंने यह अनुभव किया और मेरी सारी शिकायतें पल भर में दूर हो गई वैसे ही ईश्वर सबकी मन की नकारात्मक ऊर्जा को हर लें और 'मिशन शिक्षण संवाद' से जुड़कर चलो सब कहने विद्यालय बच्चों से तपकर स्वर्ग की भाँति कुंदन से निखर जाना चुनो पगडंडिया ऐसी तुम्हे सीधे शिखर जाना। दुआ निकली है ये दिल से गूँजती है दिशाओं में, उछलकर आसमाँ में तुम सितारों से बिखर जाना।।

लेखक
नीलू चोपड़ा स0अ0,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय मल्हीपुर,
जनपद-सहारनपुर।

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