अरे ओ शहर के बच्चों
जाने अनजाने अक्सर हम अपने गाँव के बच्चों की तुलना , शहर के बच्चों के साथ करने लग जाते हैं। हमेशा उन्हें शहर के बच्चों से कम आँकते हैं। लेकिन मेरा मानना है कि गाँव के बच्चों में भी बहुत प्रतिभाएं होती हैं जो शहर के बच्चों को उनसे सीखना चाहिये।
मेरी ये कविता इसी ओर इशारा करती है।
क्या पत्ती देखकर तुम पेड़ को, पहचानते हो,
ये मनमोहक महक किस फूल की, ये जानते हो ?
पवन ये पछुवा या पुरवा, बता सकते हो तुम,
ये बादल है बरसने या गरजने जानते हो?
वो भोली गाय क्या खाती, कैसे बनते हैं उपले,
रंभाना गाय या भैंसे का, तुम पहचानते हो?
कैसे बनती है नौका तलैया की, आता है तुमको,
कैसे खेते हैं उसे पतवार से, ये जानते हो?
कैसे उगते है गेहूँ, धान, आलू और गन्ने
कड़ी मेहनत से सबकी भूख मिटाना, जानते हो?
हो मछली, गिलहरी, पपीहा, चूहा या कोई साँप जहरीला,
मेरे गांव के वासी हैं ये सब, भला ये मानते हो?
बनाना फूस का छप्पर या पत्थर से कोई कुर्सी,
कला मिट्टी के बर्तन की, बताओ जानते हो?
नहीं जाना तो अब सीखो, प्रकृति प्रेम के सुख को,
अरे ओ शहर के बच्चों , जो तुम ना जानते हो?
रचयिता
रेनू तायल,
सहायक शिक्षिका,
प्राथमिक विद्यालय मिलक नगलिया जट,
विकास क्षेत्र-बिलारी,
जनपद-मुरादाबाद।
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