किसान
धरती माँ के कृषक पुत्र को
करती हूँ निशदिन प्रणाम
प्रतिक्षण जो करते हैं काम
नहीं करते कभी विश्राम
ऋग्वेद, रामायण के ग्रन्थों ने
किया कृषक तेरा ही बखान
अन्नविद, कृष्टराधि उपाधि से
किया सर्वदा ही सम्मान
हेमन्त, वर्षा चाहे हो ग्रीष्म
होती सबकी धूप प्रचण्ड
देश की खातिर तुमने ही तो
शीत-ऊष्ण से किया संघर्ष
किसान कभी अधपेट सो जाता
निराशा में भी आस जगाता
भोर सुनहरा भी आएगा
यही भाव जग को दिखलाता
शस्य -श्यामला वसुंधरा की
माटी की तुम शान हो
कृषक - पुत्र तुम भारत माँ के
आर्यावर्त के मान हो।।
रचयिता
दीपा पाण्डेय,
प्रवक्ता संस्कृत,
राजकीय बालिका इंटर कॉलेज काकड़,
विकास खण्ड-बाराकोट,
जनपद-चम्पावत,
उत्तराखण्ड।
👏👏👏
ReplyDelete