जन जन का गणतंत्र
आया पुनः दिवस वह सुंदर,
जब अपना गणतंत्र बना,
संविधान इठलाया खुद पर,
और तिरंगा खूब तना,
बात हुई फिर बराबरी की,
लिंग भेद को किया परे,
जाति धर्म का भेद छोड़,
ऊपर उठने की बात करें,
हाँ अधिकार मिले हैं हमको,
पर कर्तव्यों को भी छू लें,
दायित्वों को समझें हम,
और संविधान को ना भूलें।
खून बहा है बहुत कीमती,
इस गणतंत्र को पाने को,
सदियों हुआ संघर्ष घोर,
इस स्वराज को लाने को।
उत्सव आज मनाना लेकिन,
करना विचार तुम क्षणभर को,
याद उन्हें करना जरूर,
जो न कभी लौटे घर को।
कोटि-कोटि नमन है उन्हें,
उन पर हमको नाज है,
अपने रक्त की बूँदों से,
लिख गये हमारा आज हैं।
नियम नीति सब जन सीखें,
संविधान का मंत्र है,
श्रेष्ठ राष्ट्र निर्माता है यह,
जन जन का गणतंत्र है।
रचयिता
पूनम दानू पुंडीर,
सहायक अध्यापक,
रा०प्रा०वि० गुडम स्टेट,
संकुल-तलवाड़ी,
विकास खण्ड-थराली,
जनपद-चमोली,
उत्तराखण्ड।
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