नेताजी

भारत भूमि  का  भाग्य जनमा था।

1897 ओडिशा कटक का अंगना था।।


उल्लास तमन्ना,  चहुँओर फैली थी।

माँ प्रभावती, पिता जानकी की देहरी थी।


पिता ने लौटाई, राय बहादुर की उपाधि।

बेटे का आत्मसंकल्प, भारत की आजादी।।


चल पड़े राष्ट्र धर्म की, राह पकड़ कर।

बिना हुए विचलित, गली मोहल्ले दोराहे पर।।


एक नई किरण आई, लेकर नया सन्देश।

हुआ प्रबल तूफान, देख आपका भेष।


बाँध कफ़न, किया रोकने का तमाम प्रयास।

पर न रोक पाए अटूट इरादा आपका।।


भारतीयों ने, खून की कीमत पहचानी थी।

माँगी गयी, जब उनसे कुर्बानी थी।।


देख बन्धनों में माँ को, रोते थे आप।

सजग प्रहरी से, सोते थे सदैव आप।।


कहते भारतीयों, आगे बढ़कर आओ।

जरा कफ़न बाँधकर तो दिखलाओ।।


जय हिंद का नारा देकर,

जीवन अपना दान लगाया।


वो खून-खून नहीं सुन लो भाया।

जिसने सुभाष जी पर शीष न नवाया।।


रचनाकार
अंजनी अग्रवाल,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय सेमरुआ,
विकास खण्ड-सरसौल, 
जनपद-कानपुर नगर।

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