नेताजी
आज़ाद सोच ने जिसकी,
तोड़ दी गुलामी की जंजीरें;
अंग्रेजों के महलों की,
हिला दी जिसने नींवें।
"जय हिन्द" के नारे से,
जोश नया जगा दिया;
खून के बदले आज़ादी,
सबको ये बतला दिया।
कभी ना भेड़ चाल चली,
ना मिला विचार जहाँ;
साथ ना उनका दिया कभी।
दिलाने को आज़ादी,
हर तरह का प्रयास किया;
देश से विदेश तक,
सबका सहयोग प्राप्त किया।
आज़ाद हैं जिनके प्रयासों से,
उन "नेताजी " को नमन।
रचयिता
हिना सिद्दीकी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय कुंजलगढ़,
विकास खण्ड-कैंपियरगंज,
जनपद-गोरखपुर।
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