बेटी
बेटी है घर का गहना
माँ-बाप से दूर कभी न रहना।
बेटी है घर की रोशनी
घर को जगमग करने वाली
ये है घर की लक्ष्मी
घर को धन धान्य से भरने वाली।
आवाज़ ऐसी जैसे चिड़ियों का चहकना
हँसी ऐसी जैसे फूलों का मुस्कुराना
घर में बिखेरे प्रेम और खुशी
न रहने दे किसी को दुखी।
माँ देखती उसमें अपना बचपन
उसे कराती अपनी सब इच्छाएँ पूरी
जब बेटी हो जाती बड़ी
चिंता में रहते माँ बाप हर घड़ी।
उसके ससुराल जाने की करते तैयारी
रख अपने मन पर पत्थर भारी
फिर ब्याह दी जाती बिटिया प्यारी
बन जाती अपने ससुराल की बहूरानी।
दो परिवारों को सहेजती
नहीं किसी से कुछ कहती
रखती मायके का मान
करती ससुराल पर अभिमान।
फिर ये बेटी माँ बनती
अपने बेटी में बचपन ढूंढती।
यही रीत है चलती आई
बेटी है अपनी पर हुई पराई।
रचयिता
सुषमा मलिक,
सहायक अध्यापक,
कंपोजिट स्कूल सिखेड़ा,
विकास खण्ड-सिंभावली,
जनपद-हापुड़।
Comments
Post a Comment