हक किसका

तितली और मधुमक्खी,

की बाग में मुलाकात हुई।

फूलों पर ज्यादा हक किसका?

इस पर उनकी बात हुई।


तितली बोली "फूलों पर,

जब भी मैं मंडराती हूँ"।

अपनी सुन्दर काया से,

सहलाकर शोभा बढ़ाती हूँ।


मधुमक्खी ने कहा "बहिन हम,

खुद क्यों अपना गुणगान करें"?

अच्छा  हो  इसका  निर्णय,

 आकर  स्वयं  भगवान  करें।


सुनकर दोनों की मीठी बातें,

भगवान ने उनको  समझाया।

जीवन का इक गूढ़ रहस्य,

उनको  प्यार से  बतलाया।


तितली तुम अति सुन्दर हो,

फूल -फूल  मंडराती  हो।

इठलाकर  चंचलता  से,

फूलों का रस पी जाती हो।


यह बतलाओ तुमने इसमें,

क्या जगत कल्याण किया..?

अपना स्वार्थ सिद्ध करने में,

जीवन अपना व्यतीत किया।


मधुमक्खी वहीं दूर-दूर से,

फूलों से  रस ले आती है।

नि:स्वार्थ भाव मेहनत से

मीठा-मीठा शहद बनाती है।


परोपकार  भाव  से भरा,

शहद  औषधि बन जाता है।

बच्चे,  बूढ़े और  जवान

सबके  मन को भा जाता है ।


जगत कार्य में मधुमक्खी संग,

फूलों  का  भी नाम  हुआ।

मधुमक्खी  का फूलों पर,

प्रथम  अधिकार   हुआ।


रचयिता
रमेश चंद्र जोशी(सत्यम जोशी),
सहायक अध्यापक, 
रा0 प्रा0 वि0 बैकोट,
विकास खण्ड - धारचूला,
जनपद - पिथौरागढ़,
उत्तराखण्ड।

Comments

  1. प्रेरणाप्रद अभिव्यक्ति

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