लाडली हैं बेटियाँ
बेटी खुशी है, अभिशाप नहीं,
बेटी का घर में आना पाप नहीं।
बेटी जन्म पर खुशियाँ मनाओ,
शुभ मांगलिक गीत गाओ।
कुदरत का उपहार है बेटी,
हर घर की एक शान है बेटी।
जगत जननी और मान है बेटी,
घर की तो मुस्कान है बेटी।
बेटी है बेटों से बढ़कर,
अब तो कोई संशय नहीं...?
नभ, जल, थल में कहीं भी परचम,
जहाँ बेटी ने लहराया नहीं..?
एक कन्या थी इंदिरा गाँधी,
इकलौती माँ -बाप की।
इतिहास में रहेगी गाथा,
पहली महिला प्रधानमंत्री भारत की।
नवरात्रि में कन्यापूजन,
घर में बेटी जन्म से दुखी मन।
बेटा कुलदीपक कहलाये,
बेटी दो-दो घर जगमगाये।
माँ, बहन और सुन्दर पत्नी चाहिए,
लेकिन घर में बेटी नहीं......।
कोख में जब मरवाओगे,
तब दुल्हन कहाँ से लाओगे...?
बाल विवाह, दहेजप्रथा, सतीप्रथा,
भ्रूण हत्या (लिंग परीक्षण)
रूढ़िवादिता के चक्कर में,
अधिकारों से वंचित मन.....।
शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण पर,
मगर जमाना बदल रहा है।
महिला सशक्तिकरण व अधिकार,
जागरूकता अभियान चल रहा है।
दूषित मानसिकता छोड़नी होगी,
बेटा-बेटी समान हैं।
दो आँखें जैसे चेहरे पर,
दोनों ही अभिमान हैं।
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ,
यह तो बस एक नारा है।
घर से हो शुरुआत इसकी,
यह संकल्प हमारा है।
रचयिता
बबली सेंजवाल,
प्रधानाध्यापिका,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय गैरसैंण,
विकास खण्ड-गैरसैंण
जनपद-चमोली,
उत्तराखण्ड।
Nice creation dee congratulations 🙏
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