माखनलाल चतुर्वेदी

भारत के ख्याति प्राप्त कवि लेखक और पत्रकार,

रचनाओं में था जिनकी लोकप्रियता का भंडार।

4 अप्रैल 1889 में जन्मे,  माखनलाल चतुर्वेदी नाम,

गुलाम भारत की दुर्दशा से आत्मा करे  चीत्कार।


राष्ट्रप्रेम था कूट कूट कर, वरिष्ठ साहित्यकार,

युग की आवश्यकता से नहीं था इनको इनकार।

देशवासियों को दिया त्याग, बलिदान का उपदेश,

देशभक्ति से ओतप्रोत ""भारतीय आत्मा"" नाम साकार।


गणेश शंकर विद्यार्थी से थे अत्यंत प्रभावित,

राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रियता ना रही बाधित।

कारावास में भी इनकी कलम चली निरंतर,

आजादी के दीवानों को भी किया प्रोत्साहित।


"हिम तरंगिणी" ने साहित्य अकादमी पुरस्कार पाया,

"संतोष और बंधन सुख" में गणेश की यादों को सजाया।

1963 में पद्मभूषण भारत सरकार से पाया,

राष्ट्रभाषा हिंदी पर आघात से अलंकरण था लौटाया।


"पुष्प की अभिलाषा" सदियों तक अमर रहेगी,

"साहित्य देवता" "वेणु लो गूँजे धरा" सदा प्रसिद्ध रहेगी।

"युग चरण", "अमर राष्ट्र", "हिमकिरीटनी" थे सितारे,

नव छायावाद स्थापना में माखनलाल नाम रहेगा।


साहित्य सेवा से कभी  न लिया विश्राम,

कलम भी नहीं चाहती थी आराम।

30 जनवरी 1968 में जग से किनारा कर गए,

रह गया इस जग में माखनलाल जी का नाम।


रचयिता
नम्रता श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।

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