फूल देई, छम्मा देई
खिली प्रकृति,
बिखरी हरियाली,
पीली चुनरी ओढ़
पहन के इठलाई,
स्वागत चैत का कर
चहकी पीली सरसों,
इतराएँ फूल नाच,
नई फूटी कोंपले।
नव वर्ष का हो,
जब आगमन यहाँ,
मनमोहक वनों का
हो सके वर्णन कहाँ,
स्वागत ऋतुराज का
हो बेसब्र करें यहाँ,
सूरज ने ज्यों खोली
पीली -पीली डोरियाँ,
नन्हों की चल उठी
चहकती टोलियाँ
देवालय से घर चौक,
गाँव द्वार -द्वार तक,
फुल कंडी उठाएँ
घोघा माता की डोलियाँ,
हर देहरी -देहरी को
फूलों से सजायें
आठ दिवस तक,
मनौती मंगलकामनाएँ
बालपन के हैं ये,
अनमोल खजाने
सबको यूँ बरबस ही
बचपन याद दिलाए,
पूजन माता का कर
सामूहिक भोज कराएँ,
गायें सब मिल गीत, मन
फ्यूंली सा खिल जाए,
हर देहरी हो मंगल
हरे हर एक अमंगल,
काज हो सबके सफल
मन के बाल उद्गार,
देव हों दैणी द्वार,
पूर्ण हो अन्न भंडार
बनाए पकवान सयेई,
उत्तराखंडी समृद्ध संस्कृति
फूलदेई छम्मा देई,
फूलदेई छम्मा देई।
रचयिता
जया चौधरी,
सहायक अध्यापक,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय बलखिला मलारी,
विकास खण्ड-जोशीमठ,
जनपद-चमोली,
उत्तराखण्ड।
Amazing
ReplyDelete😍😍😍😍😘😘😘😘
ReplyDelete👍👍👍👏👏👏👏
ReplyDeleteFuldehi ki shubhkamnaye
ReplyDeleteBahut behtreen👏
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteAti sundar kavita
ReplyDelete💐💐💐👌👌👌बहुतख़ूब
ReplyDeleteSo sweetie
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ReplyDeleteSister jaya ji
ReplyDeleteSuper
ReplyDeletethanks a lot to all the respectable scholars 🙏🌷🌷🌷🌹🌹
ReplyDeleteVery nice poem ma'am 👍🏻👍🏻👍🏻
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteNic poetry
ReplyDeleteMaam,
ReplyDeleteAwesome........
Heartly thanks for this excellent and beautiful creation. Wish u all d best.
चैत्र मास (हिंदू नववर्ष) के आगमन के साथ ही ऋतुराज बसंत के आरंभ होने पर विभिन्न फूलो के साथ बड़े हर्ष से सांस्कृतिक लोकपर्व मनाने का इस सुंदर कविता के माध्य्म से आपके द्वारा बड़ा ही मनमोहक एवम सुंदर वर्णन किया गया है। मैडम आपको इस बेहतरीन व सूंदर रचना के लिए दिल से धन्यवाद एवम शुभकामनाएं।
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