कविता दिवस
बन्द पड़ी है सीने में जो
कविता बन कर आई है
माँ की बोली हिन्दी में वो..
जग में हर दिल को भरमाई है,,
कविता दिल के तार खोलती
बन्द जुबानी फिर भी बोलती
अनबूझे अनकहे पलों की..
साक्षात परमेश्वर की परछाईं है,,
कितना दर्द सहा है जग में
सागर कितना भरा है रब ने
नारी की पीड़ा शब्दों में..
कविता बन कर छाई है,,
रचयिता
रीता गुप्ता,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय कलेक्टर पुरवा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।
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