प्यासे कौवे की बुद्धिमानी
प्यासा कौवा काँव-काँव कर,
घूम रहा था इधर-उधर।
छत पर एक घड़ा रखा था,
फौरन उसकी पड़ी नजर।
प्यास लगी थी बहुत जोर से,
घड़े पे जाकर बैठ गया।
झाँक के देखा तली में पानी,
कौवे का तन ऐंठ गया।
गर्मी के मारे प्राण का संकट,
जाता कौवा और किधर।
प्यासा कौवा काँव-काँव कर,
घूम रहा था इधर-उधर।
घुमा-घुमा कर गर्दन अपनी,
लगा सोचने कोई चाल।
आ जाता यदि पानी ऊपर,
तो होता न इतना बेहाल।
लगा डालने बीन के कंकण,
बारी-बारी घड़े के अंदर।
प्यासा कौवा काँव-काँव कर,
घूम रहा था इधर-उधर।
पानी का तल बढ़कर ऊपर,
कंकड़ पड़ने से आया।
प्यासे कौवे ने अपनी प्यास,
पीकर पानी खूब बुझाया।
इसके बाद वह उड़ा जोर से,
हवा में बच्चों फर-फर।
प्यासा कौवा काँव-काँव कर,
घूम रहा था इधर-उधर।
कितना भी यदि संकट बच्चों,
जीवन में भारी आता।
बुद्धि से अपने काम जो लेता,
वही सफलता पाता।
कौवे सा तेज दिमाग लगाना,
रखना सब ओर नजर।
प्यासा कौवा काँव-काँव कर,
घूम रहा था इधर-उधर।
रचयिता
अरविन्द दुबे मनमौजी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अमारी,
विकास खण्ड-रानीपुर,
जनपद-मऊ।
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