बारहमासा

अब की ऐसी होली आई

घर नाहीं मोरे कन्हाई। 

चैत महीना पहले आये

सखियाँ मिलजुल चैता गायें

कूक ने कोयल की हूक उठाई

घर नाहीं मोरे कन्हाई।।


दूजा है बैसाख महीना

तुम बिन दूभर हो गया जीना।

रतियाँ हो गई हैं दुःखदाई

घर नाहीं मोरे कन्हाई।।


जेठ महीना तीजा आये

धूप धूल पसीना लाये।

चलती नाहीं है पुरवाई

घर नाहीं मोरे कन्हाई।।


आषाढ़ में बुंदिया रिमझिम बरसे

और भी मोरा मनवा तरसे।

होत बहुत मोरी जगहँसाई

घर नाहीं मोरे कन्हाई।।


फिर आयो मनभावन सावन

झूले पड़ गये, आँगन-आँगन।

कारी बदरिया घिर-घिर आई

घर नाहीं मोरे कन्हाई।।


भादों मोरा जिया बौराया

उनका कोई संदेस न आया।

न ही कोई पाती आई

घर नाहीं मोरे कन्हाई।।


क्वार कुँवारे सपने महके

मनवा मोरा डगमग बहके।

उनको मोरी सुध न आई

घर नाहीं मोरे कन्हाई।।


कार्तिक ठंड गुलाबी लायो

सपने साथ सराबी लायो।

सपनों पे स्याही है छाई

घर नाहीं मोरे कन्हाई।।


अगहन मन ने अदहन उबाले

घूम-घूम पड़े पाँव में छाले।

बाट जोहत अंखियाँ पथरायीं

घर नाहीं मोरे कन्हाई।।


बड़ी-बड़ी लागे पूस की रतियाँ

भाए न मोहे कोई बतियाँ।

अब तो आजा रे हरजाई

घर नाहीं मोरे कन्हाई।।


हाड़ कँपाता माघ है आया

साथ नहीं मोरे, मोरी छाया।

बदरी के संग गई परछाईं

घर नाहीं मोरे कन्हाई।।


रंग बिरंगा फागुन आयो

मोहे कोई रंग न भायो।

कैसी उसने रार मचाई

घर नाहीं मोरे कन्हाई।।


कौसर जहाँ,
सहायक अध्यापक, 
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बड़गहन,
विकास क्षेत्र-पिपरौली,
जनपद-गोरखपुर।



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