गौरैया
मेरे घर के आँगन में,
फुदक रही है जो गौरैया।
तिनका-तिनका जोड़ रही है,
वंश बढ़ाने को गौरैया।
संकट में है जीवन उसका,
नहीं बचे अब मड़ई-टाटी।
नहीं बचे अब कच्चे घर के,
वे मुंडेर व सोंधी माटी।
नहीं घोंसले बनते उनके,
अब ओरी की छइयां।
मेरे घर के आँगन में,
फुदक रही है जो गौरैया।
तिनका-तिनका जोड़ रही है,
वंश बढ़ाने को गौरैया।
काली पट्टी गर्दन पर नर,
मादा इनकी भूरी है।
दो से तीन अंडे देने की,
मादा की मजबूरी है।
बच्चे इनके उड़ जाते हैं,
तीन हफ्ते में भइया।
मेरे घर के आँगन में,
फुदक रही है जो गौरैया।
तिनका-तिनका जोड़ रही है,
वंश बढ़ाने को गौरैया।
अंडे से निकले बच्चे इनके,
अंधे हैं पीली चोंच लिए।
वह देखो आती गौरैया,
कीड़े अपनी चोंच लिए।
मानव तुम्हें बचाना होगा,
खत्म हो रही जो गौरैया।
मेरे घर के आँगन में,
फुदक रही है जो गौरैया।
तिनका-तिनका जोड़ रही है,
वंश बढ़ाने को गौरैया।
कृत्रिम घोंसले टाँगो अपने,
घर के आस-पास प्यारे।
मरे न कोई अब गौरैया,
गर्मी में पानी के मारे।
फिर से आये मेरे घर में,
चूँ-चूँ करती वह गौरैया।
मेरे घर के आँगन में,
फुदक रही है जो गौरैया।
तिनका-तिनका जोड़ रही है,
वंश बढ़ाने को गौरैया।
रचयिता
अरविन्द दुबे मनमौजी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अमारी,
विकास खण्ड-रानीपुर,
जनपद-मऊ।
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