कविता
मन के भावों को वो,
शब्दों में पिरोए देती है।
कल्पना, दर्द को कविता,
खुद में ही समा लेती है।।
जीवन का सार बताए,
ग़म को हर्फ़ में छुपाए।
गूँगे की वह बानी बन जाती है,
कविता धड़कनों में बस जाती है।।
रीति-रिवाजों के बन्धन हों,
या पुरखों की रवानी बताती है।
साँसों की सरगम कभी बने,
कभी मातम राग को गाती है।।
शब्द, छन्द, मसी सहेलियाँ उसकी,
मुखरित हो अद्भुत रंग लाती हैं।
कभी प्रेरणा बन, कभी आशा बन,
अंधेरे मन को लौ-पथ दिखाती है।।
सावन की फुहार में बरसे,
सामाजिक पुकार बन गूँजे।
बदलते राजनीतिक रंगों में,
चलती अन्तर्द्वंद के उमंगों में।।
आस्था के सागर में बहती है,
निश्चल कवि-मन में रहती है।
नभ से ऊँची, जलधि सम गहराई,
थके मन में, नव उमंग जोश जगायी।।
गागर में सागर सी बसती है,
बिन बोले, बड़े घाव करती है।
दिलों को दिलों से जोड़ देती है,
कविता मन के भाव पढ़ लेती है।।
रचयिता
वन्दना यादव "गज़ल"
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक,
विकास खण्ड-डोभी,
जनपद-जौनपुर।
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