रंगमंच

है रंगमंच ये जीवन सारा,

सबको कठपुतली बनाए।

भिन्न-भिन्न किरदारों में।

नित हमको नाच नचाए।


कभी बनाए चोर, पुलिस,

कभी हमको जज ये बनाए।

कभी मंजर बुरा दिखाए ये,

कभी सौगात खुशी की लाए।


दुष्ट नेताओं, बाबाओं का,

काला चिठ्ठा ये दिखलाए।

दुनियाँ के सामने इनका,

सारा सच सामने लाए।


कभी रुलाए, कभी हँसाए,

कभी गुदगुदा जाए।

चिन्ता, फिकर और ख़्याल,

अपनों को जता जाए।


कभी बचपन, कभी जवानी,

कभी बुढ़ापे की याद दिलाए।

रंगमंच ये जीवन का जाने,

कितने ही रंग दिखाए।


कभी धोखा, लालच, ईर्ष्या का,

दुर्भाव मन में जगाए।

प्यार, दया, करुणा का कभी,

दिल में सागर लहराए।


दरिन्दों की दरिंदगी का,

जग को एहसास कराए।

हर दिन हर पल नए-नए,

है सबक हमको सिखलाए।


कभी जंगल, पेड़, नदी बनकर,

पर्यावरण बचाए।

कभी जोकर का भेष बदल,

हमसे मसखरी कराए।


रंगमंच की है बात निराली,

अच्छे अच्छों के होश उड़ाए।

आस्तीन के साँपों का भी,

ये पर्दाफाश कर जाए।


हमें हमारी कमियाँ बताने को,

कभी दर्पण बन जाए।

रंगमंच वो मंच है प्यारे जो,

जिससे कोई बचके ना जाए।


आओ हम सब  जीवन के,

रंगमंच को रंगीन बनाएँ।

ईश्वर दे हमें जो जिम्मेदारी

वो ही किरदार निभाएँ।


रचनाकार
सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।



Comments

Total Pageviews

1164363