महामानव के विदाई के क्षण
महामानव के विदाई के क्षण
मृत्यु भी अटल सत्य है न चाहते हुए भी जो भी इस संसार में आता है उसे अपनी यात्रा पूर्ण कर एक दिन अपने धाम को लौटना होता है। इस जीवन रूपी यात्रा में सफलता और असफलता का पैमाना सिर्फ आपको चाहने वालों की फेहरिस्त है और उनकी वो दुआएँ एवं शुभकामनाएँ थीं जो आज दलगत राजनीति, सम्प्रदाय वर्ग से ऊपर उठकर श्री अटल जी को मिल रही थीं..
देश के प्रधानमंत्री रहे, शानदार कवि, ओजस्वी वक्ता, भारत रत्न से सम्मानित हुए और इस सबसे अलग वो सम्मान जो किसी को नहीं मिलता वह सभी के लिए सम्मानित है वह सभी को प्रिय हैं। इसके अलावा मुझे नहीं लगता कोई व्यक्ति ईश्वर से कुछ और भी चाहता होगा। उन्होंने सब कुछ पा लिया लम्बे समय से गम्भीर रूप से अस्वस्थ होने के बावजूद मृत्यु को इंतज़ार के लिए कह दिया।
शायद उन्हें 15 अगस्त को तिरंगा फहरते देखने की अभिलाषा थी..... अब विदाई का समय है वह लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे। मैं हरगिज़ दुखी नही हूँ बल्कि आतुर हूँ। जब रथ से वह अपने धाम को जाएँगे खड़े होकर तालियाँ बजाकर उस महामानव को शानदार विदाई देने के लिये..!!
अंत में अटल जी की इन पंक्तियों के साथ उन्हें नमन करती हूँ ....
"मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ
लौटकर आऊँगा,कूच से क्यों डरूँ?"
लेखिका
सुषमा त्रिपाठी,प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय रुद्रपुर,
विकास खण्ड-खजनी,
जनपद-गोरखपुर।
Very nice thought of great leasent man of Indian political history
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