मदनलाल धींगरा
माँ भारती का लाडला
मदनलाल धींगरा
--पुण्य तिथि पर विशेष--
जो मातृभूमि की रक्षा में
बलिदान किया करते हैं।
इतिहास भले विस्मृत कर दे
पर वे दिल में रहा करते हैं।।
वे आजादी के परवाने
वो अमर पूत भारत माँ के।
निर्भयता के पर्याय बने
फाँसी पर चढ़ते खुद जाके।
ऐसा ही बलिदानी बेटा
था नाम मदनलाल धींगरा।
आजादी का वो दीवाना
अपने वचनों से नहीं फिरा।
वह खुदीराम का अनुयायी
सावरकर का अनुगामी था।
अभिनव भारत का क्रांतिदूत
गोरों के लिए सुनामी था।।
थी 1 जुलाई 1909
वह शाम बड़ी मतवाली थी।
इंडियन, नेशनल एसोसिएशन की
एनुअल पार्टी होने वाली थी।
इसमें शामिल थे गोरे भी
जो मौज उड़ाने आये थे।
विलियम हट कर्जन वायली भी
वाइफ संग आने वाले थे।
उसे नही पता था मदन लाल
प्रलय काल बन आएगा।
खुदीराम और दत्त कन्हाई
की मौत का बदला चुकाएगा।
जैसे ही पार्टी खत्म हुई
वायली जाने को था लपका।
आ गया सामने मदन लाल
शत्रु को देख मस्तक ठनका।
मतवाले मदनलाल ने तब
अपनी पिस्तौल निकाली थी।
वायली का मस्तक चूर किया
पाँच गोलियाँ मारी थी।।
एक पारसी डॉक्टर को उनने
छठवीं, सातवीं गोली मारी थी।
जो उन्हें पकड़ने था दौड़ा
उसकी खोपड़ी उड़ा दी थी।।
फिर होंठो पे मुस्कान लिए
शांत भाव से खड़े रहे।
विचलित होते कब वीर भला
कर्तव्य मार्ग पर अड़े रहे।।
17 अगस्त 1909
फाँसी का फंदा चूमा था।
बाईस वर्ष का मदनलाल
वन्दे मातरम कह झूमा था।
माँ भारती का अमर लाल
सदियों तक तेरी याद रहे।
तुम जैसे लालों के कारण
भारत माता आजाद रहे।।
रचयिता
राजकुमार शर्मा,
प्रधानाध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय चित्रवार,
विकास खण्ड-मऊ,
जनपद-चित्रकूट।
मदनलाल धींगरा
--पुण्य तिथि पर विशेष--
जो मातृभूमि की रक्षा में
बलिदान किया करते हैं।
इतिहास भले विस्मृत कर दे
पर वे दिल में रहा करते हैं।।
वे आजादी के परवाने
वो अमर पूत भारत माँ के।
निर्भयता के पर्याय बने
फाँसी पर चढ़ते खुद जाके।
ऐसा ही बलिदानी बेटा
था नाम मदनलाल धींगरा।
आजादी का वो दीवाना
अपने वचनों से नहीं फिरा।
वह खुदीराम का अनुयायी
सावरकर का अनुगामी था।
अभिनव भारत का क्रांतिदूत
गोरों के लिए सुनामी था।।
थी 1 जुलाई 1909
वह शाम बड़ी मतवाली थी।
इंडियन, नेशनल एसोसिएशन की
एनुअल पार्टी होने वाली थी।
इसमें शामिल थे गोरे भी
जो मौज उड़ाने आये थे।
विलियम हट कर्जन वायली भी
वाइफ संग आने वाले थे।
उसे नही पता था मदन लाल
प्रलय काल बन आएगा।
खुदीराम और दत्त कन्हाई
की मौत का बदला चुकाएगा।
जैसे ही पार्टी खत्म हुई
वायली जाने को था लपका।
आ गया सामने मदन लाल
शत्रु को देख मस्तक ठनका।
मतवाले मदनलाल ने तब
अपनी पिस्तौल निकाली थी।
वायली का मस्तक चूर किया
पाँच गोलियाँ मारी थी।।
एक पारसी डॉक्टर को उनने
छठवीं, सातवीं गोली मारी थी।
जो उन्हें पकड़ने था दौड़ा
उसकी खोपड़ी उड़ा दी थी।।
फिर होंठो पे मुस्कान लिए
शांत भाव से खड़े रहे।
विचलित होते कब वीर भला
कर्तव्य मार्ग पर अड़े रहे।।
17 अगस्त 1909
फाँसी का फंदा चूमा था।
बाईस वर्ष का मदनलाल
वन्दे मातरम कह झूमा था।
माँ भारती का अमर लाल
सदियों तक तेरी याद रहे।
तुम जैसे लालों के कारण
भारत माता आजाद रहे।।
रचयिता
राजकुमार शर्मा,
प्रधानाध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय चित्रवार,
विकास खण्ड-मऊ,
जनपद-चित्रकूट।
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