गोस्वामी तुलसी दास जी

संवत पन्द्रह सौ चौवन,
शुक्ल सप्तमी सावन।

चित्रकूट में राजापुर,
तीर्थ बड़ो है पावन।

मुख में बत्तीस दन्त धरे
बोल उठे श्रीराम।

राम बोला तब नाम पड़ो
गोस्वामी को नाम।।

पिता आत्माराम हैं
हुलसी है महतारी।

जिनके घर पैदा हुये
तुलसीदास अवतारी।

करि कृपा नरहरि ने
ले गए सूकर खेत।

वेद शास्त्र सब सीख के
फिर आये निज क्षेत्र।।

 रत्नावली के संग में
बंध गए परिणय सूत।

प्रेम भँवर में पड़ि गए
सरस्वती के पूत।।

पत्नी जो मैके गयी
बुरा हो गया हाल।

 तुलसी आधी रात को
भाग चले ससुराल।।

यमुना बढ़ी,भयंकर वर्षा
चले आँधी-तूफान।

शव में बैठ के तुलसी बाबा
ससुरारी को सन्धान।।

रत्नावली रतन की खानी
दियो ऐसो फटकार।

अस्थि,चर्म की देह में
लागी प्रीत तुम्हार।

जो रघुपति पद प्रीत हो
हो जातो कल्याण।

तुलसी बैरागी हुए
ऐसो उपज्यो ज्ञान।

रामचरितमानस रची
काशी बनो निवास।

रघुनायक गाथा लिखी
जनप्रिय तुलसीदास।

दोहावली,कवितावली
लिखा पार्वती मंगल।

विनय पत्रिका,बरवै रामायण
लिख्यो जानकी मंगल।।

चित्रकूट के रामघाट में
तुलसी घिस रहयो चन्दन।

पहचानयो नहीं राम को
प्रभु लगा गयो चन्दन।।

काशी के असि घाट पर
तुलसी तज्यो शरीर।

संवत सोलह सौ असी
गंगा जी को तीर।

 सकल विश्व में रघुनायक
की कीर्ति कथा के गायक।

आज जयंती तुलसी दास की
कथा लिखी सुखदायक।।

रचयिता
राजकुमार शर्मा,
प्रधानाध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय चित्रवार,
विकास खण्ड-मऊ,
जनपद-चित्रकूट।

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