भला कैसे वह देश जगेगा
जहाँ का शिक्षक स्वयं सो गया।
समझो सोया देश,
भला कैसे वह देश जगेगा?
अर्थवाद के पीछे-पीछे
खड़ा स्वार्थ में आँखें मीचे।
जिस शिक्षक को पता नहीं है
क्या उसका कर्तव्य,
भला कैसे वह देश जगेगा?
सुख सुविधा बस खोज रहा है
जो विलासिता भोग रहा है।
अनाचार का पथ ही होता है जिसका गन्तव्य।।
भला कैसे वह देश जगेगा?
देश स्वयं भी डूबा रहा है
नाविक बनकर चला रहा है।
राष्ट्र नाव के तल में जो भी रोज कर रहा छेद।
भला कैसे वह देश जगेगा?
नैतिक मूल्य मिटाने वाला
गलत मार्ग दिखलाने वाला।
स्वार्थ और सुख सुविधा की खातिर
भूल गया हो धर्म, भला कैसे वह देश जगेगा?
किसी देश का
शिक्षक बैठा, लेट गया फिर देश ।
यदि शिक्षक विश्राम करे तो सो जाता परिवेश।।
जिसे भान ना राष्ट्र धर्म क्या, क्या होता उत्कर्ष ।
भला कैसे वह देश जगेगा?
जो असत्य का पोषण करता
सदवृत्तियों का शोषण करता।
लेकर के उत्कोच हमेशा
अपनों का अवशोषण करता।।
अपने ही कर्मों से करता है जो अक्सर भेद।।
भला कैसे वह देश जगेगा?
रचयिता
डॉ0 अश्विनी शुक्ल,
प्रधानाध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय चौबीसी,
विकास खण्ड-हैदरगढ़,
जनपद-बाराबंकी।
समझो सोया देश,
भला कैसे वह देश जगेगा?
अर्थवाद के पीछे-पीछे
खड़ा स्वार्थ में आँखें मीचे।
जिस शिक्षक को पता नहीं है
क्या उसका कर्तव्य,
भला कैसे वह देश जगेगा?
सुख सुविधा बस खोज रहा है
जो विलासिता भोग रहा है।
अनाचार का पथ ही होता है जिसका गन्तव्य।।
भला कैसे वह देश जगेगा?
देश स्वयं भी डूबा रहा है
नाविक बनकर चला रहा है।
राष्ट्र नाव के तल में जो भी रोज कर रहा छेद।
भला कैसे वह देश जगेगा?
नैतिक मूल्य मिटाने वाला
गलत मार्ग दिखलाने वाला।
स्वार्थ और सुख सुविधा की खातिर
भूल गया हो धर्म, भला कैसे वह देश जगेगा?
किसी देश का
शिक्षक बैठा, लेट गया फिर देश ।
यदि शिक्षक विश्राम करे तो सो जाता परिवेश।।
जिसे भान ना राष्ट्र धर्म क्या, क्या होता उत्कर्ष ।
भला कैसे वह देश जगेगा?
जो असत्य का पोषण करता
सदवृत्तियों का शोषण करता।
लेकर के उत्कोच हमेशा
अपनों का अवशोषण करता।।
अपने ही कर्मों से करता है जो अक्सर भेद।।
भला कैसे वह देश जगेगा?
रचयिता
डॉ0 अश्विनी शुक्ल,
प्रधानाध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय चौबीसी,
विकास खण्ड-हैदरगढ़,
जनपद-बाराबंकी।
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