सावन को कैसे बुलाओगे
पतझड़ है बसा जब आँगन में,
सावन को कैसे बुलाओगे।
गुमसुम चेहरे बेरंग उपवन,
कैसे इन्हें हँसाओगे।
सागर मन्थन कर डालो फिर,
रत्नाकर उगले रत्न अपार,
जब देव दनुज के साथ खड़े,
मच रहा जगत में हाहाकार
उठता है प्रश्न ये आज पुनः,
ये अमृत किसे पिलाओगे।
कितने सुंदर गीत लिखे,
पर जीवन में उल्लास नहीं।
कितना इत्र बहाया लेकिन,
आया वो मधुमास नही।
सुप्त सुरों की वीणा में,
झंकार कहाँ से लाओगे।
जग में चेहरों के रंग कई,
मन भी हैं कुछ मैले उजले।
पल रहा कपट, छल, स्वार्थ यहाँ,
मिथ्या आडम्बर के मेले।
बहुरंगी चेहरों की भाषा,
कैसे भला पढ़ पाओगे।
आशाओं से सब बँधे हुए,
दिनकर फिर नवयुग लाएगा,
ये निशा बीत जायेगी शीघ्र,
अम्बर स्वर्णिम हो जाएगा।
जब तिमिर ही फैला है जग में,
प्रभात कहाँ से लाओगे।
पतझड़ है बसा जब आँगन में,
सावन को कैसे बुलाओगे ।
रचयिता
सावन को कैसे बुलाओगे।
गुमसुम चेहरे बेरंग उपवन,
कैसे इन्हें हँसाओगे।
सागर मन्थन कर डालो फिर,
रत्नाकर उगले रत्न अपार,
जब देव दनुज के साथ खड़े,
मच रहा जगत में हाहाकार
उठता है प्रश्न ये आज पुनः,
ये अमृत किसे पिलाओगे।
कितने सुंदर गीत लिखे,
पर जीवन में उल्लास नहीं।
कितना इत्र बहाया लेकिन,
आया वो मधुमास नही।
सुप्त सुरों की वीणा में,
झंकार कहाँ से लाओगे।
जग में चेहरों के रंग कई,
मन भी हैं कुछ मैले उजले।
पल रहा कपट, छल, स्वार्थ यहाँ,
मिथ्या आडम्बर के मेले।
बहुरंगी चेहरों की भाषा,
कैसे भला पढ़ पाओगे।
आशाओं से सब बँधे हुए,
दिनकर फिर नवयुग लाएगा,
ये निशा बीत जायेगी शीघ्र,
अम्बर स्वर्णिम हो जाएगा।
जब तिमिर ही फैला है जग में,
प्रभात कहाँ से लाओगे।
पतझड़ है बसा जब आँगन में,
सावन को कैसे बुलाओगे ।
रचयिता
गीता गुप्ता "मन"
प्राथमिक विद्यालय मढ़िया फकीरन,
विकास क्षेत्र - बावन,
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