राजनीति के शिखर पुरूष
राजनीति के शिखर पुरूष की
अंतिम आज विदाई है।
करूण वेदना से भारत की
आँख अश्रु भर लाई है।
कोटि नमन उस अटल प्राण को,
कभी मौत से डरा नहीं।
था अटूट विश्वास तभी वो
काल गोद से डरा नहीं।
अश्रु भरे ये नयन मानते न ऐसी सच्चाई है।
राजनीति के शिखर पुरूष......
शिखर पुरूष बन अटल हिमालय
अडिग बना सा खड़ा रहा।
प्रण पार्थ का संवाहक ले
धर्म ध्वजा सदा अड़ा रहा।
गर्जन में जो सिंह समान थे
मृदुल हृदय कवि सा पाया।
मृत्यु को भी दर पर जिसने ,
खूब प्रतीक्षा करवाया।
पद प्रतिष्ठा सत्ता ने भी जिनके
धैर्य की दी सदा दुहाई है।
राजनीति के शिखर पुरूष......
चिर-निद्रा अब भाव शून्य है ,
अग्नि विरह की प्रज्ज्वलित है।
कोटि नमन उस विजय नाद को
पोखरण में जो कर दिखलाया है।
पारंगत थे शब्द शिल्प में
UNO में हिन्दी भाषण कर बतलाया।
अजर अमर सा वो महायोद्धा ,
अजातशत्रु दुश्मन द्वारा कहलाया।
अटल आप थे, अटल रहे, सफल रहे
राष्ट्र ध्वज न मरते दम तक झुकने दिया।
तूफानों में भी सत दीप जलाकर,
राष्ट्र कीर्ति पताका जिसने नभ पे फहराई है।
राजनीति के शिखर पुरूष की
अंतिम आज विदाई है।
मौन हुआ पर मुखर रहेगा ,
अटल धरा पर अमर रहेगा।
विलय हुआ नभ में लेकिन बन
स्मृति दिलों में बना रहेगा।
नींव रखी जो भारत की वह,
युग - युग तक समृद्ध रहेगा।
अश्रुपूर्ण इन नैनों में जननायक की परछाईं है।
राजनीति के शिखर पुरूष की
अंतिम आज विदाई है।
रचयिता
वन्दना यादव " गज़ल"
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक ,
डोभी , जौनपुर।
अंतिम आज विदाई है।
करूण वेदना से भारत की
आँख अश्रु भर लाई है।
कोटि नमन उस अटल प्राण को,
कभी मौत से डरा नहीं।
था अटूट विश्वास तभी वो
काल गोद से डरा नहीं।
अश्रु भरे ये नयन मानते न ऐसी सच्चाई है।
राजनीति के शिखर पुरूष......
शिखर पुरूष बन अटल हिमालय
अडिग बना सा खड़ा रहा।
प्रण पार्थ का संवाहक ले
धर्म ध्वजा सदा अड़ा रहा।
गर्जन में जो सिंह समान थे
मृदुल हृदय कवि सा पाया।
मृत्यु को भी दर पर जिसने ,
खूब प्रतीक्षा करवाया।
पद प्रतिष्ठा सत्ता ने भी जिनके
धैर्य की दी सदा दुहाई है।
राजनीति के शिखर पुरूष......
चिर-निद्रा अब भाव शून्य है ,
अग्नि विरह की प्रज्ज्वलित है।
कोटि नमन उस विजय नाद को
पोखरण में जो कर दिखलाया है।
पारंगत थे शब्द शिल्प में
UNO में हिन्दी भाषण कर बतलाया।
अजर अमर सा वो महायोद्धा ,
अजातशत्रु दुश्मन द्वारा कहलाया।
अटल आप थे, अटल रहे, सफल रहे
राष्ट्र ध्वज न मरते दम तक झुकने दिया।
तूफानों में भी सत दीप जलाकर,
राष्ट्र कीर्ति पताका जिसने नभ पे फहराई है।
राजनीति के शिखर पुरूष की
अंतिम आज विदाई है।
मौन हुआ पर मुखर रहेगा ,
अटल धरा पर अमर रहेगा।
विलय हुआ नभ में लेकिन बन
स्मृति दिलों में बना रहेगा।
नींव रखी जो भारत की वह,
युग - युग तक समृद्ध रहेगा।
अश्रुपूर्ण इन नैनों में जननायक की परछाईं है।
राजनीति के शिखर पुरूष की
अंतिम आज विदाई है।
रचयिता
वन्दना यादव " गज़ल"
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक ,
डोभी , जौनपुर।
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