कैसी शिक्षा

(मन विद्रोही उठी तरंग)

कभी-कभी लगता है मुझको
शिक्षा महज भुलावा है
'पढ़-लिखकर आगे बढ़ना है'
नारा सिर्फ छलावा है

पढ़े-लिखे लोगों की दुनिया
क्या सचमुच में अच्छी है?
जिस शिक्षा में मूल्य नहीं हों
क्या वह विद्या सच्ची है?

बुद्धि बढ़ी, सुविधाएं बढ़ीं
उन्नति की सभी निशानी हैं
पर नैतिकता के अभाव में
सब विकास बेमानी हैं

खुद करते उत्पन्न समस्या
खुद उसका हल ढूँढ़ रहे
और सफलता मिलने पर
'विज्ञानवेत्ता' झूम रहे

सच्ची उन्नति हृदय-शुद्धता
बसा जहाँ असली आनन्द
जो शिक्षा ये फूल खिला दे
वही लाएगी सुखद बसन्त

मन करता है, सब बच्चों से
हिल-मिलकर बस बात करूँ
कथा-कहानी गीत सुनाकर
बच्चों में संस्कार भरूँ

उनसे मैं भोलापन सीखूँ
सुनूँ-सुनाऊँ जीवन-गान
मधुर-मधुर अनुशासन रखकर
चलते-फिरते बाँटूं ज्ञान

श्रुति-परम्परा के हम वाहक
शिक्षा का उद्देश्य चरित्र
खुद महके, सबको महका दे
शिक्षा-शिक्षित वही पवित्र

रचनाकार
प्रशान्त अग्रवाल,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय डहिया,
विकास क्षेत्र फतेहगंज पश्चिमी,
ज़िला-बरेली (उ.प्र.)

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