जन-जन व्याकुल
भारत माँ का अटल सूर्य, है चला अस्त होने को
और धरा के जन-जन व्याकुल हैं रोने को
लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी, सच के अटल पुरोधा
संघर्षों से हार न मानी, ऐसे थे वे योद्धा
आज चले हैं आसमान के तारों में सजने को
और धरा के जन-जन व्याकुल हैं रोने को
चले आपके जाने से एक अंधकार छायेगा
सदा साथ मिलकर चलने की बात कौन बतलायेगा
नफ़रत के बीजों को फिर कुछ घूम रहे बोने को
और धरा के जन-जन व्याकुल हैं रोने को
संकल्पों पर अटल, किन्तु भीतर से रहे मुलायम
जीवन गाथा सदा आपकी, यहाँ रहेगी कायम
अटल कुँवारा चला आज है, मृत्यु वरण करने को
और धरा के जन-जन व्याकुल हैं रोने को
भारत माँ का अटल सूर्य, है चला अस्त होने को
और धरा के जन-जन व्याकुल हैं रोने को
और धरा के जन-जन व्याकुल हैं रोने को
लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी, सच के अटल पुरोधा
संघर्षों से हार न मानी, ऐसे थे वे योद्धा
आज चले हैं आसमान के तारों में सजने को
और धरा के जन-जन व्याकुल हैं रोने को
चले आपके जाने से एक अंधकार छायेगा
सदा साथ मिलकर चलने की बात कौन बतलायेगा
नफ़रत के बीजों को फिर कुछ घूम रहे बोने को
और धरा के जन-जन व्याकुल हैं रोने को
संकल्पों पर अटल, किन्तु भीतर से रहे मुलायम
जीवन गाथा सदा आपकी, यहाँ रहेगी कायम
अटल कुँवारा चला आज है, मृत्यु वरण करने को
और धरा के जन-जन व्याकुल हैं रोने को
भारत माँ का अटल सूर्य, है चला अस्त होने को
और धरा के जन-जन व्याकुल हैं रोने को
रचयिता
श्रीश कुमार बाजपेई " प्रभात "
सहायक अध्यापक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय टण्डौना,
विकास खण्ड-हरियावां,
जनपद-हरदोई।
श्रीश कुमार बाजपेई " प्रभात "
सहायक अध्यापक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय टण्डौना,
विकास खण्ड-हरियावां,
जनपद-हरदोई।
Sadhubad
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