वंदेमातरम्

भारत भूमि तपस्थली है, ॠषियों के  बलिदान की
मिट्टी इसकी  सोना उगले, वसुंधरा  पहचान की ।
वंदेमातरम्, ,,,,,,,,,

सर पर केसरिया चूनर है, आँचल इसका धानी है।
लाज रखेंगे मिलकर सारे जन-गण-मन अभियान की ।

खड़ा हिमालय देखो यारों,सीना ताने जोश में
जल थल नभ  सेनाएँ रक्षा करती हैं सम्मान की ।
वंदेमातरम्, ,,,,,,

वन उपवन है सुन्दर-सुन्दर, बाघ मोर  विचरण करते
नृत्य दिखाते  तरह-तरह के, भ्रमर गीत  अर्पण करते।

भाषा भाषी बहुत यहाँ पर, फिर भी एका बनते हैं
अलग-अलग हैं राग हमारे, फिर भी सबको सुनते हैं।

पंचाग हमारा  शक संवत है, करता सबको एकात्मक
राष्ट्र चिन्ह  अशोक स्तम्भ है, सत्य की जय बतलाता है ।

वंदेमातरम्, ,,,,,,,,,,,,

धर्म हमारे अलग मगर भारतवासी कहलाते हैं
भारत माँ के चरणों में हम नित-नित शीष झुकाते हैं।

सभी राष्ट्रीय पर्व हम मिलजुल साथ मनाते हैं
इंकलाब के जयघोषों को ऊँचे स्वर में गाते हैं ।

वंदेमातरम्, ,,,,,,,,,,

अजर-अमर है गौरव गाथा, वीरों के  इतिहास से।
अक्षर अक्षर अमृत बरसे, पढ़ लो इसके शान से ।

रूपया इसकी  मुद्रा है और हॉकी  देश का मान है
हम भारत भू पर जन्मे हैं हम सबको अभिमान है।

वंदेमातरम्, ,,,,,,,,,,,

रचयिता
वन्दना यादव " गज़ल"
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक ,
डोभी , जौनपुर।

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