जहाँ चाह है वहीं राह
एक आशा सी है मन में
आगे बढ़ते ही जाना है।
रोके न रुक सकें क़दम हमारे
तोड़ पाबन्दियों की दीवारें
राहों से काँटें निकालना है
आगे बढ़ते ही जाना है
पता है मन्ज़िल दूर अभी
लेकिन रुकना भी नहीं है
लम्बा रास्ता और कठिन डगर
आसान नहीं है यह सफ़र
फिर भी है एक हौंसला साथ
डालकर हाथों में हाथ
नहीं डरेंगे,आगे बढ़ेंगे
नित नए-नए कार्य करेंगे।
जबसे हमने ये ठाना है,
सबने भी यही तो माना है,
करेंगे नहीं हम अब परवाह,
जहाँ चाह है वहीं राह।
रचयिता
निधि केडिया,
प्राथमिक विद्यालय फत्तेपुर,
विकास खण्ड-बड़ागाँव,
जनपद-वाराणसी।
आगे बढ़ते ही जाना है।
रोके न रुक सकें क़दम हमारे
तोड़ पाबन्दियों की दीवारें
राहों से काँटें निकालना है
आगे बढ़ते ही जाना है
पता है मन्ज़िल दूर अभी
लेकिन रुकना भी नहीं है
लम्बा रास्ता और कठिन डगर
आसान नहीं है यह सफ़र
फिर भी है एक हौंसला साथ
डालकर हाथों में हाथ
नहीं डरेंगे,आगे बढ़ेंगे
नित नए-नए कार्य करेंगे।
जबसे हमने ये ठाना है,
सबने भी यही तो माना है,
करेंगे नहीं हम अब परवाह,
जहाँ चाह है वहीं राह।
रचयिता
निधि केडिया,
प्राथमिक विद्यालय फत्तेपुर,
विकास खण्ड-बड़ागाँव,
जनपद-वाराणसी।
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