भारत आजाद कराना है

सन सैंतालीस की वो बेला
जब आजादी का था मेला
वो जज्बा फिर दिखलाना है
भारत आजाद कराना है।

धर्म-जाति की आड़ लिये
ले खड़े हाथ तलवार लिये
मानवता की हत्या करने
आतंकी ये तैयार खड़े
आतंकवाद के इन पौधों को
मिट्टी मे आज मिलाना है।
वो जज्बा------

बिना दाम न काम करें
कुछ अधिकारी न कान धरें
आम आदमी है बेबस
सरकारें भी आराम करें
भ्रष्टतंत्र की इस निंद्रा से
सबको आज जगाना है।
वो जज्बा------

भूखे बच्चे करते शोर
चले गरीबी पर न जोर
कुछ दाने-दाने को तरसें
दूध-मलाई खाते कुछ चोर
भूख-गरीबी के दलदल से
मानव को बाहर लाना है।
वो जज्बा फिर दिखलाना है
भारत आजाद कराना है।

रचयिता
तिलक सिंह,
प्रधानध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय रतरोई,
विकास खण्ड-गंगीरी,
जनपद-अलीगढ़।

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