अंग्रेज़ी प्रार्थना आदि में विशेष ध्यातव्य बातें
अक्सर ऐसी सामग्री जो अल्पपरिचित भाषा (जैसे अंग्रेज़ी) में होती है या जिसमें क्लिष्ट शब्दों की बहुतायत होती है (या अन्य प्रकार की सामग्री भी), जब बच्चों के बीच उसका सामूहिक वाचन/गायन कराया जाता है तो प्रायः कुछ त्रुटियाँ दृष्टिगोचर होती हैं जिन पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है :-
1. प्रार्थना की महत्ता, उसके लाभ, एकाग्रचित्त से न करने पर होने वाली हानियों आदि से बच्चों को परिचित न कराना।
2. वाचन से पूर्व बच्चों को उसका भावार्थ न समझाया जाना।
3. कुछ ही मुखर बच्चों की बुलंद आवाज़ के कारण अन्य बच्चों का उदासीन बन जाना या अपने प्रयासों में न्यूनता ले आना।
4. प्रतिज्ञा आदि सामग्री का ज़रूरत से अधिक तीव्र वाचन।
5. बच्चों में मंद स्वर और तीव्र स्वर के बीच 'मर्यादित स्वर' की अवधारणा स्पष्ट न होना।
6. आँखें बंद करने पर वहाँ भी जोर देना, जहाँ अभी बच्चे को आँखें खुली रखकर भावानुरूप इशारों सहित गायन कराना अधिक रुचिकर, आवश्यक और प्रभावी हो सकता है।
7. सरस लयात्मक माधुर्य पर ज़रूरत से कम ध्यान देना।
8. पंक्ति के अंतिम शब्दों का उपेक्षापूर्ण गायन/वाचन।
9. प्रार्थना पंक्ति-दर-पंक्ति कराये जाने की स्थिति में समूह द्वारा उच्चारित अंतिम शब्द की प्रतिध्वनि (echo) समाप्त होने से पूर्व ही नयी पंक्ति का आरंभ कर देना जिससे नयी पंक्ति का प्रथम शब्द अस्पष्ट ही रह जाता है।
10. आरम्भिक अंतराल, शब्द-मध्य, वाक्य-मध्य अंतरालों का कम होना। (किसी विद्वान ने कहा भी है कि 'कविता शब्दों में नहीं, उसके मध्य के अंतरालों में है', आखिर बोले गये शब्दों को समझने के अलावा महसूस करने का समय भी तो दीजिये, भले ही वह सेकंड से भी कम हो। तूफान नहीं बयार हो)
11. क्रमशः मंद-स्वर में समाप्ति तक लाने की बजाय एकाएक समाप्ति।
12. प्रार्थना समाप्त होते ही एकाएक आँखें खोलना (जबकि तन्मयता की स्थिति में समाप्ति के कुछ देर बाद तक उसका प्रभाव महसूस करना सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तत्त्व होता है)
13. अन्य बिंदु जो सुधी साथियों की दृष्टि में आयें।
प्रार्थना का प्रभाव प्रत्यक्ष नहीं दिखता किन्तु जिस प्रकार स्थूल की अपेक्षा सूक्ष्म अधिक प्रभावी होता है, ठीक उसी प्रकार बाल-कोमल-चित्त पर प्रार्थना का सूक्ष्म प्रभाव भी दूरगामी स्थायी महत्त्व का होता है। यदि उसे सही से प्रार्थना करना आ गयी तो समझिए हमने उसके सम्पूर्ण जीवन को साधने के लिए एक अनमोल निधि प्रदान कर दी ।
लेखक
प्रशान्त अग्रवाल,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय डहिया,
विकास क्षेत्र फतेहगंज पश्चिमी,
ज़िला-बरेली (उ.प्र.)
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