महाकवि कालिदास

जिस डाली पर बैठे थे वो
उसी डाल को काट रहे थे,
किसी तरह से अपना जीवन
वो जैसे-तैसे काट रहे थे।

माँ काली की कृपा हुई
तब कालिदास महान हुए,
विद्योत्मा से मिलकर वो
जड़मति से सुजान हुए।

संस्कृत भाषा के परम विज्ञ्य
रचना ग्रन्थों की कर डाली,
'रघुवंशम्' की गाथा लिखकर
दिव्य धरा को कर डाली।

'कुमारसम्भवम्' 'मेघदूतम्'
लिखकर वो महान बने,
'अभिज्ञान शाकुन्तलम्' लिखकर
वे भारत के अभिमान बने।

शत्-शत् नमन् तुझको मेरा
हे महाज्ञान के भण्डारी,
हे काव्य शास्त्र के व्याख्याता
'अलंकार' 'रस' के संचारी।

रचयिता
डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश',
सहायक अध्यापक, 
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, 
विकास खण्ड-लक्ष्मीपुर, 
जनपद-महराजगंज।

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